मैं राहुल बोस, पैदायश, जन्म और कर्मभूमि के लिहाज से खुद को आधा बंगाली, चौथाई पंजाबी और बाकी महाराष्ट्रीयन मानता हूं। खेल, सिनेमा और सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव महसूस करता हूं। पढ़-लिखकर छह साल तक विज्ञापन कंपनी में कॉपीराइटिंग की, इसी दौरान फिल्मों और स्टेज पर एक्टिंग करता रहा। अप्रैल, 1995 में मैंने इस्तीफा दे दिया। दो महीने के लिए मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी। हालांकि मुझे भरोसा था कि जब तक मैं यह वैक्यूम नहीं बनाऊंगा, जीवन को भरने के लिए चीजें नहीं मिलेंगी। इसके बाद मैं जैसा चाहता था, चीजें वैसे ही होती गईं।
कड़ी मेहनत ही नहीं सब कुछ
हर समय कड़ी मेहनत का नारा बुलंद करते रहना भी ठीक नहीं। कड़ी मेहनत का मतलब यह नहीं कि आप ऐसे कामों में अपनी ऊर्जा को खपाते रहें, जिनके हो जाने से भी कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला। एक दीवार में कील ठोकने के लिए घूंसे मत बरसाइए, बल्कि हथौड़ी की मदद लीजिए। जहां चतुराई से काम लेना हो, वहां चतुराई ही काम आएगी। जहां, जरूरी हो, वहां हार्ड वर्क को स्मार्ट वर्क में बदलना सीखिए।
असुरक्षा को सुरक्षा में बदलिए
एक हुनरमंद या समझदार इंसान यह सोचकर कभी भी नहीं घबराता कि उसका क्या होगा? अपना काम जानने वाले लोगों के बीच असुरक्षा काम को लेकर नहीं होती, बल्कि माहौल से होती है। मंत्र यही है कि अपने काम पर भरोसा कीजिए और उसके लिए जरूरी माहौल बनाते रहने में जुटे रहें। एक दिन लोग आपको स्वीकार करेंगे।