मायावती ने मुख्तार अंसारी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। लेकिन, अन्य दलों द्वारा उन्हें निमंत्रण देने की होड़ लग गई। एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्तार को कहीं से भी चुनाव लडऩे का न्योता दे डाला। सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने भी अपने दस दल वाले भागीदारी संकल्प मोर्चा से मुख्तार को लडऩे के लिए आमंत्रित किया। ऐसे में राजनीति के अपराधीकरण पर कोई लगाम लगेगी, इसकी परिकल्पना मुश्किल लगती है। जब तक खुद चुनाव आयोग अपराधियों को रोकने की पहल नहीं करता तब तक ऐसे ही चलता रहेगा।
ये भी पढ़ें- हर वर्ष आने वाली वर्षाजनित बीमारियों से सबक लेने की जरूरत दरअसल, अब यूपी सहित देशभर में चुनाव पूरी तरह से धनबल और बाहुबल का खेल हो गया है। विधानसभा चुनाव में एक उम्मीदवार अधिक से अधिक 30 लाख रुपए खर्च कर सकता है। लेकिन, जमीनी हकीकत कुछ और है। चुनाव जीतते-जीतते यह रकम करोड़ो में पहुंच जाती है। ऐसे में अब चुनाव लडऩा आम आदमी के बस की बात नहीं। जिसके पास पैसा और ताकत है, वह ही चुनाव लड़ रहा है। राजनीतिक दलों को भी फंड चाहिए।
मनी और मसल्स के इस गठजोड़ के कारण ही माफियाओं और बाहुबली नेताओं की राजनीति में एंट्री होती है। यही पार्टियों के लिए करोड़ों रुपयों का इंतजाम करते हैं। पैसे और मसल पावर के दम पर यह खुद चुनाव जीतते और पार्टियों को जिताते हैं। इसी कारण चुनाव में तमाम माफिया व अपराधी छवि वाले जनप्रतिनिधि दिखाई देते हैं। चुनाव से पहले वह अपना आपराधिक विवरण भी देते हैं। लेकिन राजनीतिक पार्टियां उनका यह कहकर बचाव कर लेती हैं, कि जब तक वह दोषी सिद्ध नहीं हो जाते तब तक वह निर्दोष हैं। ताजा उदाहरण में ओमप्रकाश राजभर ने मुख्तार के बचाव में यही दलील दी है। ऐसी ही दलील राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा दे रही है।
ये भी पढ़ें- यूपी में बढ़ते आत्मदाह के मामलों की चिंता आखिर किसको? निर्वाचन आयोग ने इसे रोकने की कोशिश की और एक प्रस्ताव लाई थी, जिसमें जिनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हैं, उनके चुनाव लडऩे पर रोक लगाने को कहा गया, लेकिन खुद राजनीतिक दलों को यह पसंद नहीं आया। यदि अपराधीकरण रोकना है और चुनाव में माफियाओं डॉन की एंट्री पर प्रतिबंध लगाना है तो चुनाव आयोग के प्रस्ताव को मंजूरी मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देकर कानून बनाना चाहिए। और सबसे महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल ईमानदारी से इसमें अपना सहयोग दें। (अ.गु.)