गरीबों को कैसे मिले न्याय, विधिक सहायता पर खर्च के मामले में यूपी फिसड्डी

कानूनी मदद पर प्रति व्यक्ति खर्च महज ०.75 रुपए.

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पत्रिका एक्सक्लूसिव.
अभिषेेक गुप्ता.
लखनऊ. उप्र गरीब व्यक्तियों को कानूनी मदद दिलाने के मामले में बहुत पीछे है। बीते साल लीगल एड के लिए मिली केंद्रीय मदद की बहुत बड़ी राशि बिना खर्च किए ही लैप्स हो गयी। उप्र सरकार ने गरीबों को न्यायिक मदद दिलाने के नाम पर सिर्फ लोक अदालतें आयोजित करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। इस बात का खुलासा हाल ही में जारी कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव- सीएचआरआई की रिपोर्ट से हुआ है।
इसी रविवार को नई दिल्ली में हाईकोर्ट के न्यायाधीश एस. मुरलीधर और अन्य न्यायिक अधिकारियों की मौजूदगी में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल यानी कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव-सीएचआरआई २०१६-१७ की रिपोर्ट को जारी किया गया। इस रिपोर्ट का नाम ‘सलाखों के पीछे उम्मीद?’ (होप बिहाइंड बार्स) कहा गया है। इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारत में कानूनी मदद पर प्रति व्यक्ति खर्च महज 0.75 रुपए है। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य विधिक सेवा प्राधिकारण जिन पर गरीबों को विधिक सहायता उपलब्ध कराने का दायित्व हैं, उन्हें आवंटित धनराशि में से 14 फीसदी राशि खर्च ही नहीं हो पायी। बिहार, सिक्किम और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने तो आवंटित धनराशि में 50 फीसदी में से भी कम खर्च किया। जबकि, उप्र का हाल तो और भी बुरा था।
उप्र ने एक तिहाई फंड का किया इस्तेमाल-
सीएचआरआई की रिपोर्ट में बताया गया कि केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा कैदियों के विधिक सहायता के लिए जो फंड दिया गया। उसका बेहद कम हिस्सा राज्य सरकारों ने इस्तेमाल किया। इसकी वजह से वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद बड़ी रकम बिना इस्तेमाल के ही लैप्स हो गयी। इसका क्या कारण है यह स्पष्ट नहीं है। सीएचआरआई की रिपोर्ट के अनुसार उप्र ने तो आवंटित फंड का केवल एक तिहाई हिस्सा ही इस्तेमाल में लिया है।
24 करोड़ में सिर्फ १६ करोड़ ही खर्च-
2016-17 में यूपी को एनएलएसए (नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी) द्वारा 493,63,226 रुपए का बजट दिया गया था। यह बजट प्रदेश को एसएलएसए द्वारा एसएलएसए (स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी) संस्थाओं को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत विभिन्न कानूनी सहायता योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए मिला था। इसके अलावा राज्य सरकार ने भी अपने मद से एसएलएसए संस्था को बजट दिया था। 2016-17 में यूपी सरकार ने एसएलएसए संस्था को 19,36,17,000 रुपए का बजट आवंटित किया था। इस तरह केंद्र और राज्य का बजट मिलाकर कुल 24,29,80,226 रुपए का फंड बना। लेकिन इसमें से केवल 16,03,14,813 रुपए ही खर्च किए गए। बाकी बचे 8,26,65,413 रुपए लैप्स हो गए। यह कुल आवंटित राशि का एक-तिहाई हिस्सा है।
लोक अदालत पर कर दिया बड़ा खर्च-
रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में उप्र में विधिक सहायता को मिली बड़ी राशि में से ज्यादा खर्च तो लोक अदालतों के आयोजनों पर ही खर्च हो गए। इसके अलावा कानूनी प्रतिनिधित्व और कानूनी जागरूकता पर मामूली राशि खर्च की गयी। उप्र ने 56,02,241 रुपए का बजट लोक अदालतों के आयोजन पर खत्म कर दिया गया। यह विधिक सहायता के लिए उप्र में कुल खर्च की गई राशि 16,03,14,813 का 3.44 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमूमन देश में कानूनी जागरूकता और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों पर किए गए खर्चों में से सबसे ज्यादा 60 प्रतिशत खर्च अदालतों पर किया जाता है। 30 प्रतिशत कानूनी जागरूकता और केवल 10 प्रतिशत हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को कानूनी मदद दिलाने पर खर्च किया जाता है। लोक अदालतों के आयोजन में बड़ा हिस्सा वकीलों की फीस पर खर्च किया जाता है। जबकि यह गरीब कैदियों की पैरवी के लिए नियुक्त किए गए हैं। लेकिन, कैदियों और बाकी अन्य चीजों पर एक रुपए भी खर्च नहीं किया गया।
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