हर तरफ और तबाही। लेकिन, सरकार अभी सिर्फ सात जिलों में कुल 2,37,374 किसानों की कुल 1,72,0018 हेक्टेयर फसलों को ही प्रभावित मान रही है। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद राहत आयुक्त कार्यालय फिर से जानकारियां जुटा रहा है। संकट यह है कि राहत की उम्मीद में किसान अपनी बची-खुची फसल भी नहीं बटोर रहा। जब तक आंकड़े जुटाने वाले पहुंचेगे तब तक अधपका अन्न खेतों में ही सड़ जाएगा। इंसान तो खा नहीं पाएगा चिडिय़ांं भी न चुग सकेंगी। ऐसे में जनहानि, पशुहानि और मकान क्षति से प्रभावित लोगों को तत्काल सहायता कैसे मिलेगी?
मुख्यमंत्री और अफसरों के बयान में भी विरोधाभास है। सीएम ने 24 घंटे में राहत देने का निर्देश दिया है। जबकि, अफसरों ने बीमित किसान जिनकी फसलों को ओला, वर्षा व जलभराव से नुकसान हुआ है, उसकी सूचना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्राविधानों के अनुसार निर्धारित समय 72 घंटे में उपलब्ध कराने को कहा है। आकाशीय बिजली से फसल की क्षति की सूचना भी 72 घंटे के अंदर देने को कहा गया है। ऐसे में 24 घंटे के भीतर राहत मिलने की बात बेमानी साबित होगी।
फसलों की तबाही का मंजर आंखों से दिख रहा है। फिर कानूनों और पड़ताल का मकडज़ाल क्यों? राहत की जरूरत तुरंत है। होली का त्योहार सिर पर है। किसानों की होली बेरंग न हो इसलिए नियम-कानूनों से परे लेखपाल और ग्राम सेवक मौके पर मुआयना करें और राहत बांटें। यह तय करना सरकार का काम है कि राहत देने में कैसे पारदर्शिता बरती जाए और धांधली न होने पाए। आखिर किसानों के लिए भी तो जीरो टालरेंस नीति लागू होती। सरकार यहां भी तत्परता दिखाए। आखिरी व्यक्ति के आंसू पोछने पर ही रामराज्य की परिकल्पना साकार होगी। योगी सरकार ऐसा कर सकी तभी उसे सही मायने में किसान हितैषी माना जाएगा।