हाईकोर्ट ने शादी के लिए धर्म-परिवर्तन के अपने ही आर्डर पर लगाई रोक, पसंद का साथी चुनने पर दिया ये फैसला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी के लिए धर्म-परिवर्तन संबंधी अपने ही फैसले पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट कहा है कि हर व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, रहने का अधिकार है।

<p>हाईकोर्ट ने शादी के लिए धर्म-परिवर्तन के अपने ही आर्डर पर लगाई रोक, पसंद का साथी चुनने पर दिया ये फैसला</p>
प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी के लिए धर्म-परिवर्तन संबंधी अपने ही फैसले पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट कहा है कि हर व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, रहने का अधिकार है। यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का मूल तत्व है। कोर्ट ने कहा की हम यह समझने में नाकाम हैं कि जब कानून दो व्यक्तियों को चाहे वह समान-लिंग के ही क्यों न हों, शांतिपूर्वक साथ रहने की अनुमति देता है तो किसी को भी चाहे वह कोई व्यक्ति, परिवार अथवा राज्य ही क्यों न हो, उनके रिश्ते पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।
पहले के फैसले को रोका

कोर्ट ने कुशीनगर के विष्णु पुरी निवासी सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हम इस संबंध में अपने पहले के फैसलों को रोक रहे हैं। इनसे अच्छे कानूनों का आधार तैयार नहीं हो रहा है। हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल और पंकज नकवी की बेंच ने यह फैसला सुनाया। जज ने कहा कि दो परिपक्व लोगों को अपने जीवनसाधी के चुनाव का अधिकार है। वह किससे साथ रहना चाहते हैं, यह उनका चुनाव है। इसी आधार पर हम प्रियांशी और नूरजहां मामलों में दिये गए अपने फैसलों पर रोक लगाते हैं। यह दोनों फैसले व्यक्ति विशेष के जीवन और आजादी के मसलों को नहीं छूते।
नहीं कर सकते व्यक्तिगत रिश्तों में हस्तक्षेप

कुशीनगर के विष्णु पुरी निवासी सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार मामले में याची का कहना था कि वह दोनों बालिग हैं और 19 अक्टूबर 2019 को उन्होंने मुस्लिम रीति रिवाज से निकाह किया है। इसके बाद प्रियंका ने इस्लाम को स्वीकार कर लिया है और एक साल से वह दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे हैं। प्रियंका के पिता ने इस रिश्ते का विरोध करते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई है, जिसके खिलाफ उन्होंने याचिका दाखिल की थी। याचिका का विरोध करते हुए प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया कि सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन करना प्रतिबंधित है और ऐसे विवाह की कानून में मान्यता नहीं है। वहीं कोर्ट ने कहा कि हम इनको हिंदू मुस्लिम की नजर से नहीं देखते। यह दो बालिग लोग हैं, जो अपनी मर्जी और पसंद से पिछले एक वर्ष से साथ रह रहे हैं और व्यक्तिगत रिश्तों में हस्तक्षेप करना व्यक्ति की निजता के अधिकार में गंभीर अतिक्रमण है, जिसका कि उसे संविधान के अनुच्छेद 21 में अधिकार प्राप्त है।
बनने जा रहा था कानून

आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने अपने पहले के फैसलों में कहा था कि आस्था में परिवर्तन के बिना सिर्फ शादी के लिए धर्म बदलकर इस्लाम अपना लेना वैध नहीं है। इसी फैसले के आधार पर ही मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की सरकारें लव-जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की तैयारी कर रही थीं। इन कानूनों में शादी लिए धर्म-परिवर्तन को अपराध मानने का प्रावधान करने का बंदोबश्त है। इसके लिए सजा का भी प्रावधान है।
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