SC-ST Act को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, अब एेसे नहीं होगी गिरफ्तारी

SC-ST Act को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, अब एेसे नहीं होगी गिरफ्तारी

<p>SC-ST Act को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, अब एेसे नहीं होगी गिरफ्तारी</p>
लखनऊ. एससी-एसटी एक्ट में संशोधन करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि जिन मामलों में अपराध सात वर्ष से कम सजा योग्य हो, उनमें गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है। जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की खंडपीठ ने 19 अगस्त 2018 को दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने वाली एक याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही। यह आदेश संसद में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद दर्ज एफआईआर में यह फैसला आया है। जानकारी हो कि जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की खंडपीठ ने 19 अगस्त 2018 को दर्ज हुई एफआईआर को रद्द करने वाली एक याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही।
जानिए क्या है मामला

मामला गोंडा जिले के खोदारे पुलिस थाने का है। यहां राजेश मिश्रा व तीन अन्य लोगों पर 19 अगस्त 2018 को मारपीट, घर में घुसकर मारपीट करने और अपशब्द कहने पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं सहित एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी। एफआईआर के खिलाफ याचिका करते हुए राजेश व तीन अन्य ने इसे खारिज करने की प्रार्थना की थी।
इस पूरे मामले में प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में बताया था कि आरोपियों पर लगाई गई सभी धाराओं में सजा सात वर्ष से कम की है। ऐसे में जांच अधिकारी ने सीआरपीसी से सेक्शन 41 व 41ए की अनुपालना करते हुए गिरफ्तारी नहीं की है। इसके लिए 2014 के सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरनेश कुमार बनाम बिहार सरकार मामले में की गई व्यवस्था का सहारा भी सरकार ने लिया। इस सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार के पक्ष को सुनने के बाद याची खुद याचिका वापस लेना चाहता है।
जानिए, क्या है धारा-41ए

सीआरपीसी की धारा-41ए कहती है कि सात साल तक की सजा वाले अपराध के मामलों में सीधे गिरफ्तारी करने की बजाए आरोपी को नोटिस दिए जाने का प्राविधान है। जिन धाराओं में सात साल से अधिक सजा का प्राविधान हो, उन धाराओं में गिरफ्तारी की जा सकती है।
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