देश की प्रमुख आर्इटी कंपनियों का टैक्स विवाद बढ़कर 2 अरब डॉलर (करीब 137 अरब रुपए) पहुंच गया है।
नर्इ दिल्ली। देश की प्रमुख आर्इटी कंपनियों का टैक्स विवाद बढ़कर 2 अरब डॉलर (करीब 137 अरब रुपए) पहुंच गया है। ताज्जुब की बात तो ये है ये रुपया वाे है जो अभी तक सरकार को चुकाया नहीं गया है। इसमें टाटा कंसल्टंसी सर्विसेज, कॉग्निजेंट , इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों के नाम हैं। इन सभी कंपनियों का पेंडिंग टैक्स को लेकर विवाद चल रहा है। ज्यादातर विवाद एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट्स के लिए इंसेंटिव के कैलकुलेशन और डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स को लेकर है। टीसीएस , इन्फोसिस और विप्रो ने सॉफ्टवेयर टेक्नॉलजी पार्क्स ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) और स्पेशल इकनॉमिक जोन (सेज) के तहत जिन इंसेंटिव्स का दावा किया था, जिसको लेकर वो केस लड़ रही हैं।
टीसीएस का 5600 करोड़ रुपए का विवाद
देश की सबसे बड़ी आईटी सर्विसेज कंपनी टीसीएस का अथॉरिटीज के साथ 5,600 करोड़ रुपए को लेकर टैक्स विवाद चल रहा है, जो वित्त वर्ष 2017 के मुकाबले दोगुना है। वित्त वर्ष 2017 में कंपनी का 2,690 करोड़ रुपए को लेकर ऐसा विवाद चला था। वहीं दूसरी आेर कॉग्निजेंट का विवाद इस बात को लेकर है कि वह पैरंट कंपनी को जो मुनाफा देती है, उस पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स का कैलकुलेशन किस तरह से किया जाता है।
विप्रो का 1900 करोड़ रुपए का विवाद
विप्रो का पहला टैक्स विवाद 30 साल पहले वित्त वर्ष 1985-1986 का है। कंपनी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक वह 1,900 करोड़ रुपए के टैक्स विवाद में फंसी है। विप्रो के प्रवक्ता के अनुसार भारत में टैक्स पर मुकदमेबाजी एक लंबी प्रक्रिया है। इंडस्ट्री बरसों से कर विवादों के जल्द निपटारे की मांग करती आ रही है। इकनॉमिक सर्वे 2018 के मुताबिक सरकार और अदालतों को मिलकर बड़ी संख्या में लंबित मामलों के निपटारे का तरीका निकालना चाहिए।’
इंफोसिस का भी है विवाद
टीसीएस ने अगले पहली तिमाही के नतीजों के ऐलान से पहले के साइलेंट पीरियड का हवाला देकर अपनी टैक्स देनदारी में आई उछाल के बारे में कॉमेंट करने से इनकार कर दिया। लगभग 3,500 करोड़ रुपए के टैक्स विवादों में फंसा इन्फोसिस ने भी कोई टिप्पणी नहीं की।