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आखिर क्या है मामला
सेबी के आदेश के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमोटर्स ने 2000 में कंपनी में 6.83 फीसदी की हिस्सेदारी का एक्विजिशन किया था। यह एक्विजिशन 1994 में जारी 3 करोड़ वारंट को परिवर्तित करके हुआ था। आरआईएल प्रमोटर्स ने पीएसी के साथ गैर-परिवर्तनीय सुरक्षित विमोच्य डिबेंचर से संबद्ध वारंट को शेयर में बदलने के विकल्प का उपयोग कर 6.83 फीसदी हिस्सेदारी का एक्विजिशन किया। यह एक्विजिशन नियमन के तहत निर्धारित 5 फीसदी की लिमिट से ज्यादा था। आदेश के इस मामले में उन्हें सात जनवरी, 2000 को शेयर अधिग्रहण की सार्वजनिक तौर पर घोषणा करने की जरूरत थी। पीएसी को 1994 में जारी वारंट के आधार पर इसी तारीख को आरआईएल के इक्विटी शेयर आबंटित किए गए थे।
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नहीं की घोषणा
सेबी ने अपनी जांच में पाया कि प्रमोटर्स और और पीएसी ने शेयर अधिग्रहण के बारे में कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की है। जिसके बाद उन्हें नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया गया है। सेबी के नियमों के अनुसार प्रमोटर ग्रुप ने किसी भी वित्त वर्ष में 5 फीसदी से अधिक वोटिंग अधिकार का अधिग्रहण किया है, उसके लिए जरूरी है कि वह अल्पांश शेयरधारकों के लिए खुली पेशकश करे। सेबी ने कहा कि संबंधित लोगों और यूनिट्स को को जुर्माना संयुक्त रूप से और अलग-अलग देना है।