बैंकिंग संकट को लेकर अभिजीत बनर्जी भी चिंतित, कहा – सरकारी हिस्सेदारी 50 फीसदी घटाई जाए

बैंकों की स्थिति पर अभिजीत बनर्जी ने जताई चिंता
उन्होंने कहा कि फंसे कर्ज की समस्या से परेशान है देश

नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार के लिये चुने गये अभिजीत बनर्जी ने भारत में बैंक संकट को भयवाह बताया और स्थिति से निपटने के लिये आक्रमक नीतिगत बदलावों का आह्वान किया। बनर्जी ने सुझाव दिया कि सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अपनी हिस्सेदारी कम कर 50 प्रतिशत के नीचे लाना चाहिए ताकि केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की आशंका के बिना निर्णय किये जा सके।


बैठक में की बैंकों पर चर्ची

बनर्जी ने कहा कि सीवीसी के भय से बैंकों की निर्णय प्रक्रिया ठंडी पड़ती है। उन्होंने यहां लिवर फाउंडेशन द्वारा आयोजित मीडिया से चर्चा के कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘‘बैंकों का मौजूदा संकट भयवाह है। यह चिंताजनक है क्योंकि इसमें चीजें बार-बार हो रही हैं। हमें इसको लेकर सतर्क रहने की जरूरत है। मुझे लगता है कि हमें महत्वपूर्ण और आक्रमक बदलावों की जरूरत है।’’


हिस्सेदारी घटाना है जरुरी

बदलाव की जरूरत के बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सार्वजनिक हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे लाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए ताकि केंद्रीय सतर्कता आयोग इन्हें (सरकारी बैंकों) को नियमित नहीं करे।


सीवीवी करेगा जांच

बनर्जी ने कहा कि सार्वजनिक बैंकों में नीतिगत निर्णय के मामले में स्थिरता है। वे इस बात से आशंकित रहते हैं कि उनके निर्णय का सीवीसी जांच करेगा क्योंकि बैंकों में सरकार की बहुलांश हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा कि इसके कारण चूक के मामले छिपाये जाते हैं जिससे बाद में समस्या होती है। इसीलिए मैं चाहता हूं कि सरकार की बैंकों में कम हिस्सेदारी हो ताकि बैंक क्षेत्र में निर्णय की जांच की जो आशंका रहती है, वह दूर हो।


फंसे कर्ज की समस्या से परेशान देश

देश में बैंक करीब पांच साल से उच्च मात्रा में फंसे कर्ज की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके कारण बैंकों का नेटवर्थ कम हो रहा है। इतना ही नहीं पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) के साथ क्षेत्र में घोटाले समस्या को बढ़ा रहे हैं। इससे पहले, अगस्त में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने पूर्व सतर्कता आयुक्त टी एम भसीन की अध्यक्षता में बैंक धोखाधड़ी के लिये परामर्श बोर्ड का गठन किया। बोर्ड का काम 50 करोड़ रुपये से अधिक की बैंक धोखाधड़ी की जांच करना और कार्रवाई के बारे में सुझाव देना है।

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