शहरों से अधिक गांवों में सरकार विरोधी स्वर सुनाई दे रहे हैं।
कृष्णनगर शहर से एक किलो मीटर दूर आसननगर के मोहन मण्डल अपनी पत्नी गार्गी के साथ अपने छोटे से केले के खेत में काम करते मिलते हैं। वे कहते हैं कि ममता दीदी सीधे किसानों के बैंक खाते में केन्द्र से मिलने वाले अनुदान आने से रोक दी। उसमें भी उनकी पार्टी के लोगों को कटमनी चाहिए था। अब वे कहती हैं कि जीतने पर उनकी सरकार किसानों और महिलाओं को पैसे देगी। अब उन पर भरोसा करने से अच्छा एक बार मोदीजी पर भरोसा किया जाए। कटमनी तो बंद होगा।
वहां से 13 किलो मीटर दूर पोरागाछा गांव के सड़क किनारे पेड़ के छाव में बैठे लोग ताश खेल रहे हैं। चुनाव की बात छिड़ते ही सुविनय जोअरदार कहते हैं कि ममता दीदी ने काम किया है। लेकिन सिर्फ अनुदान से क्या होगा। खेती से गुजारा मुश्किल हो रहा है। धान की उचित कीमत नहीं मिलती। हमारे घर के बच्चे बेरोगार बैठे हैं। उन्हें रोजगार चाहिए।
ये चुनावी मुद्दें
चुनावी लड़ाई में तृणमूल कांग्रेस को पछाड़े के लिए भाजपा पीएम मदी को सामने रखकर स्थानीय विकास, रोजगार के साथ हिंसा, कटमनी और सिंडिकेट राज बंद करने की वादा कर रही है। वह घ्रुवीकरण, पिछड़ी जाति के लोगों की पहंचान दिलाने की राजनीति के जरिए क्षेत्र के करीब 35 प्रतिशत अनुसूचित और करीब 19 प्रति अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपने पाले में लेने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर तृणमूल अपने जन कर्याण योजनाओं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नाम पर लोगों से वोट मांग रही है।
क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण
माकपा के लाल दूर्ग कृष्णनगर लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाला कृष्णनगर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के 2011 में अस्तित्व में आने के बाद से इस पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा हो गया। वर्ष 2011 में माकपा अपने गढ़ में दूसरे स्थान पर आ गई और 2016 में उसकी जगह कांग्रेस ने ले लिया। उक्त दोनों चुनावों में भाजपा तीसरे स्थान पर रही। लेकिन वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कृष्णनगर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से लीड की थी। उसके बाद से क्षेत्र में भाजपा का प्रभाव लागातार बढ़ रहा है।
लाल दूर्ग पर पहले फहरा था भगवा
वर्ष 1971 से माकपा का लाल किला में तबदिल कृष्णनगर उत्तर विधानसभा क्षेत्र के संसदीय क्षेत्र कृष्णनगर में पहली बार भाजपा ने सेंध लगाई थी। पार्टी के सत्यब्रत मुखोपाध्याय ने 1999 में माकपा को हरा कर संसद पहुंचे और अटल बिहारी बाजपेयी के मंत्तिमण्डल में मंत्री बने। लेकिन उसके बाद विधानसभा चुनाव में बाजपेयी का लहर बेअसर हो गया। उसके बाद इस क्षेत्र पर माकपा का कब्जा हो गया। उसके बाद 2009 से इस क्षेत्र पर तृणमूल का कब्जा हो गया।