कोई 6 माह की बेटी से दूर, कोई बूढ़े मां बाप को अकेला छोड़ कर रहा श्मशान में ड्यूटी

सुबह 8 बजे से लेकर रात 8 बजे तक कोरोना प्रोटोकॉल के तहत करते दाह संस्कारहोम क्वॉरेंटीन नियम के अनुसार छात्रावास में बितानी पड़ रही रात

<p>No waiting for cremation due to lack of wood in the crematorium</p>
खंडवा. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में जहां मरीजों की सेवा में अस्पताल का स्टाफ लगा हुआ है। वहीं, मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए नगर निगम के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी दिनरात एक कर रहे है। ये कोरोना योद्धा घर-बार, माता-पिता, पत्नी-बच्चों को छोड़कर 12 से 14 घंटे श्मशान में बिता रहे है। जिन शवों को उनके अपने भी हाथ नहीं लगा रहे, ऐसे शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी इनकी ही है। कोरोना प्रोटोकॉल के तहत होम क्वॉरेंटीन नियम के चलते इन्हें छात्रावास में जगह दी गई है। पिछले चार-पांच दिन से इन सफाईकर्मियों में से कोई भी घर नहीं गया है।
परिजन हाथ नहीं लगाते तो हमें उठाना पड़ता
किशोर कुमार मुक्तिधाम पर ड्यूटी कर रहे मोहित सारसर ने बताया कि वे ग्रेजुएट हैं, एक निजी संस्थान में सर्विस एडवाइजर का काम करते थे, फिलहाल वो बंद है, इसलिए यहां ठेके पर काम कर रहे हैं। कई बार लोग शवों को हाथ नहीं लगाते तो हमें ही उठाकर चिता पर रखना पड़ता है। लोग रुपए भी देते हैं, लेकिन हममें से कोई नहीं लेता। ये काम रुपए के लिए नहीं कर रहे हैं। राज तुण्डलायत ने बताया कि पॉजीटिव मरीज का शव आने पर पीपीइ किट भी पहनना पड़ती है। इसके बाद यहीं पर कपड़े वगैरहा भी धोकर पहनना पड़ते है। इसी प्रकार
राजा हरीशचंद्र मुक्तिधाम पर तैनात रमण डंगोरे ने बताया कि उनके माता-पिता अधिक उम्र के हैं, उनका ध्यान रखना पड़ता है। घर में माता-पिता के साथ पत्नी और दो बेटी भी है। जिसमें एक बेटी ६ माह की है। परिवार को छोड़कर आना अच्छा नहीं लग रहा है। नाना तोमर ने बताया कि उनकी भी दो लड़कियां है। सुबह ८ बजे से रात ८ बजे तक ड्यूटी करते हैं। पिछले दो-तीन दिन से से इससे भी ज्यादा समय हो रहा है। जैसे ही फोन आता है, पूरी टीम यहां उपस्थित हो जाती है।
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