लाखों रुपये के राजस्व की पहुंचाई क्षति, दोषियों को बचाने में जुटे रहे अफसर, 15 साल से दबी रही जांच की फाइल

अब शासन ने अभियोजन की स्वीकृति देने दिए आदेश, आयुक्त ने पहले शासन को भेजा था पत्र, शासन ने कहा मामले का परीक्षण कर खुद दें अनुमति, लोकायुक्त ने मांगी थी पांच लोगों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति, गोपालनगर कॉलोनी में नियम विरुद्ध तरीके से की गई प्लाटिंग व भू-भाग विक्रय का मामला

<p>katni nagar nigam</p>

कटनी. नगर निगम के अधिकारी-कर्मचारियों की कारगुजारी को दबाने का नगर निगम के बड़े अफसर भरसक प्रयास कर रहे हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि जिन अधिकारी-कर्मचारियों ने लाखों रुपये के राजस्व की क्षति पहुंचाई और उनके खिलाफ जांच के लिए अभियोजन की स्वीकृति मांगी गई तो वह भी नगर निगम के अफसर नहीं दे पा रहे। अब शासन स्तर पर स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि आयुक्त मामले का शीघ्र परीक्षण कर अभियोजन के लिए स्वीकृति दें। शासन के इस पत्र से नगर निगम में हड़कंप मच गया है। चर्चा तो यहां तक होने लगी है कि बड़े अफसर यह बात कह रहे हैं कि हमसे जितना बचाते बना बचा लिए, इनको अबतक मामले को निपटा लेना था। हैरानी की बात तो यह है कि 2005-06 का मामला है और लोकायुक्त को जांच कार्रवाई के लिए इतना समय लग रहा है। इतने लंबे समय तक जांच को दबा दिया जा रहा है, जिससे अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त तक हो जा रहे हैं।

यह है मामला
दुबे कॉलोनी के आगे खिरहनी में गोपाल नगर कॉलोनी का निर्माण हुआ है। इसमें नक्शे के विपरीत निर्माण हुआ है। इस मामले की शिकायत 2005-06 में लोकायुक्त से की गई। जांच में लोकायुक्त ने पाया है कि उपयंत्री एके पांडेय, अशित खरे वर्तमान इंदौर पदस्थापना, एसके जैन सेवानिवृत्त, लिपिक कोमल नामदेव व तत्कालीन अनुज्ञा लिपिक आलोक गर्ग दोषी पाए गए हैं। इस मामले में लोकायुक्त ने नगर निगम आयुक्त को पत्र लिखकर अभियोजन के लिए स्वीकृति चाही थी। कॉलोनाइजर कमला बाई चौदहा द्वारा गोपालनगर में प्लाटिंग की गई थी। यहां पर कॉलोनाइजर द्वारा बंधक प्लाटों को भी बेच दिया गया है, जो नियम के विरुद्ध है। इस मामले में जब शिकायत हुई तो उसके बाद नक्शे के रिवाइज के लिए भी आवेदन लगाया गया और उसमें एक और नया भू-भाग जोड़ दिया गया। इसमें शासन को लाखों रुपये के राजस्व की क्षति हुई है। इस मामले की शिकायत पर लोकायुक्त ने संज्ञान लिया और इनको दोषी पाया है।

जांच में सहयोग न करने से देरी
लगभग 15 साल का समय बीत गया है और जांच शुरू नहीं हो पाई। बताया जा रहा है कि इस मामले में ढिलाई बरती जा रही है। नगर निगम के पूर्व के जिम्मेदार अधिकारियों ने जांच में सहयोग नहीं किया। कई बार लोकायुक्त के अधिकारी दस्तावेज, कथन आदि के लिए पहुंचे, लेकिन समय पर दस्तावेज मुहैया नहीं कराए और ना ही कथन दर्ज कराए गए। फाइलें भी अधिकारियों ने दबाकर रखीं, जिससे समय पर जांच नहीं हो पाई। अब शासन ने कहा कि आयुक्त इसमें अनुमति दें।

इनका कहना है
पहले हमें अभियोजन की स्वीकृति देने के लिए निर्णय लेना था। इस मामले को फिर शासन को भेजा गया था। इसमें अशित खरे का जवाब आ गया है। परीक्षण किया जा रहा है। एक बार मामले का परीक्षण कर अभियोजन स्वीकृति के लिए आगे की कार्रवाई की जाएगी।
सत्येंद्र सिंह धाकरे, आयुक्त ननि।

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