विकास दूबे के बिकरु गांव का है ये हाल… कुछ खामोश, कुछ दुखी, कुछ छुपा रहे अपनी खुशी

वर्ष 2011 में बिकरू गांव निर्मल ग्राम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बिकरू गांव का नाम आते ही यूपी के लोगों के आंखों के सामने विकास दूबे की तस्वीर तैर जाती है।

<p>विकास दूबे के बिकरु गांव का है ये हाल&#8230; कुछ खामोश, कुछ दुखी, कुछ छुपा रहे अपनी खुशी</p>
लखनऊ. वर्ष 2011 में बिकरू गांव निर्मल ग्राम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बिकरू गांव का नाम आते ही यूपी के लोगों के आंखों के सामने विकास दूबे की तस्वीर तैर जाती है। आंतक का पर्याय विकास दूबे अब नहीं रहा। पर अगर कानपुर शहर से 40 किमी से दूर बिकरु गांव का आज का हाल देखेंगे तो पता चलेगा कुख्यात नाम की दहशत का। दो दिन बीत गए है विकास दूबे के अंतिम संस्कार को पर गांव के अधिकतर हिस्से में एक डर भरी खामोशी है। कुछ लोग खुश है, चेहरे पर बनावटी दुख दिखा रहे हैं पर उनकी आावाज की खुशी हकीकत को बयां कर दे रही है। कुछ हिस्से में गंभीर सन्नाटा पसरा है तो कुछ घरों में इस वक्त बाकी बचे लोग गंभीर मुद्रा में अपने आगे की जिंदगी का ताना बाना बुन रहे हैं। साथ ही घर से डर के मारे भागे लोगों का कुछ पता नहीं इसे भी लेकर चिंतित हैं। औरतें परेशान है कि उनके आदमी कहां गए हैं। दस दिन हो गया है। 2 जुलाई को हुए खूनी हादसे के बाद गांव के बहुत से आदमी विकास और पुलिस के डर के मारे घर छोड़कर कही छुप गए हैं। विकास की मौत के बाद इस गांव के एक हिस्से में ढोल ताशे के साथ मिठाईयां बांटी गई। गांव के इस हिस्से में चहल पहल अन्य हिस्सों कुछ अधिक है।
विश्वास दिलाने में जुटी पुलिस :- पुलिस के 150 जवानों के साथ एक बटालियन आरआरएफ के जवान भी बिकरू गांव में नजर आ रहे हैं। सभी मुस्तैद हैं। और गांव के लोगों को विश्वास दिला रहे हैं कि गांव छोड़कर गए लोग वापस गांव आ जाएं। इसके साथ पुलिस ने गांव के करीब 500 लोगों का मोबाइल सर्विलांस पर लगाकर रखा है। गांव के कई लोगों पर पुलिस को अभी भी शक है। बिकरू गांव में चार मजरे हैं, कुल आबादी क़रीब ढाई हज़ार है।
पुलिस की भूमिका पर सवाल :- प्रभात मिश्र का एनकाउंटर पुलिस और एसटीएफ़ ने किया था। घर पर दादी दुखी बैठ थी। दादी रामकली कहाकि जब विकास ने समर्पण कर दिया था तो उसे क्यों मार डाला, पुलिस वालों से ही पूछो। ऐसे गांव बहुत से लोग है जो विकास दूबे के एनकाउंटर पर सवाल कर रहे हैं और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं।
खुशी छुपाए नहीं छुपती :- गांव के किसान मुल्ला लोध के सपाट चेहरे से यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि विकास दूबे के जाने से उनको कुछ फर्क पड़ता है कि नहीं। हंसते हुए उन्होंने कहाकि बड़े लोगों की आदमी तारीफ़ ही करता है, प्रधान कोई दूसरा होता तो उसकी भी तारीफ़ लोग करते। उनकी बातें जरूर इशारा कर रहीं थी कि विकास दूबे के एनकाउंटर से वह खुश हैं। पर खुलकर सामने नहीं आना चाहते हैं।
विकास दूबे के नाम पर लगे पत्थर धूल धूसरित :- 12 जुलाई दिन रविवार को कम से कम आधे घरों में ताले लटक रहे हैं। जगह जगह ईंट पत्थर बिखरे हुए हैं। विकास दूबे का घर ख्ंडहर के मांंनिंद हो गया है। कारें टूटी फूटी पड़ी हैं। पुलिस के जवान गश्त कर रहे हैं। गांव के कुछ लोग जो शुक्रवार तक आतंक में जी रहे थे वह अब विकास के नाम पर ‘गांव के विकास’ के लिए लगाए गए पत्थरों को तोड़ रहे हैं। वह विकास दूबे का नाम गांव से मिटा देना चाहते हैं। कई साल का डर और विकास के आतंक से मिली आजादी के बाद ये लोग यह काम कर रहे हैं।
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