Hyderabad case पर सीजे ने कहा बदला कभी न्याय नहीं हो सकता

जोधपुर ( jodhpur news.current news ) भारत के प्रधान न्यायाधीश ( Chief justice of India ) शरद अरविंद बोबड़े ( Sharad Arvind Bobde ) ने हैदराबाद ( Hyderabad case ) में बलात्कार और हत्या मामले ( rape and murder case ) के चार आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ ( encounter ) में एनकाउंटर ( police encounter ) की ओर संकेत करते हुए कहा कि न्याय ( justice ) कभी भी प्रतिशोध ( vengeance ) के रूप में नहीं हो सकता।

<p>CJ on Hyderabad case said revenge can never be justice</p>
जोधपुर ( jodhpur news.current news ) .हैदराबाद ( Hyderabad case ) में बलात्कार और हत्या मामले ( rape and murder case ) के चार आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ ( encounter ) में एनकाउंटर ( police encounter ) की ओर संकेत करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश ( Chief justice of India ) शरद अरविंद बोबड़े ( Sharad Arvind Bobde ) ने कहा कि न्याय ( justice ) कभी भी प्रतिशोध ( vengeance ) के रूप में नहीं हो सकता।
यहां राजस्थान हाईकोर्ट के नवनिर्मित भवन के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए बोबड़े ने कहा कि देश में हाल की घटनाओं ने इस पूरी बहस को नए जोश के साथ छेड़ दिया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि न्याय कभी भी या तत्काल हो सकता है। न्याय को कभी भी बदला लेने के स्वरूप में नहीं होना चाहिए। उनका मानना है कि न्याय यदि बदला या प्रतिशोध बन जाता है, तो अपना चरित्र खो देता है। उन्होंने वर्तमान न्यायिक प्रणाली में मौजूदा स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि इसकी दशा, ढिलाई और आपराधिक मामलों के अंतिम निस्तारण में लगने वाले समय पर पुनर्विचार करना चाहिए और आत्म सुधार की दिशा में कदम उठाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि न्यायिक प्रणाली में तकनीक का उपयोग समय पर न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। बोबड़े ने कहा कि अगले चरण में न्याय प्रशासन प्रणाली की दक्षता में सुधार करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग को बढ़ावा देना होगा। न्याय प्रशासन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग हमें न्यायिक समय और संसाधनों को पुनर्निर्देशित करने और जटिल मामले हल करने में मदद करेगा। उन्होंने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी मदद से फैसलों के अनुवाद की सुविधा प्रारंभ की है। प्रधान न्यायाधीश ने प्री-लिटिगेशन मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने पर बल दिया और कहा कि यह बाध्यकारी होनी चाहिए। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि मध्यस्थता में डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करने के लिए कोई पाठ्यक्रम उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में पहल करते हुए बार कौंसिल ऑफ इंडिया को इस संबंध में कार्य करने को कहा गया है, जिस पर कौंसिल ने अपनी सहमति दे दी है।

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