बच्चे करते हैं दूध पीने की जिद
जींद जिले के झांझ कलां और हाल आबाद में ओम नगर में रहने वाली बुजुर्ग महिला 60 वर्षीय संतोष उम्र के इस मुकाम पर अपने पोते-पोतियों के लिए कमाने निकली है। की। संतोष केवल इसलिए ही रेहड़ी लगा रही है, ताकि उसके पोते-पोतियों को पीने के लिए दूध और खाने के लिए चीजें मिलती रहें। संतोष के छह पोता-पोती हैं। इनमें दो लड़की और चार लड़के हैं। पोता-पोती घर में जब भी खाना खाते तो वह दूध पीने की भी जिद्द करते, लेकिन परिवार की हालत इतनी सुदृढ़ नहीं थी कि सभी बच्चों को पीने के लिए दूध दिया जा सके। इसलिए संतोष ने सात महीने पहले रेहड़ी लगाना शुरू कर दिया, ताकि उसके पोता-पोती दूध से लेकर दूसरी खाने-पीने की चीज के महरूम न रह जाएंगे।
बिगड़ी आर्थिक स्थिति संभाली
दरअसल संतोष के दो बेटे हैं। कुछ साल पहले तक संतोष के दोनों बेटों का काम-धंधा ठीक चल रहा था। इसी बीच किसी प्लाट के लेन-देन को लेकर संतोष के बेटे ने अपने जान-पहचान के युवक को उधार पर पैसे दिलवा दिए। जिस युवक को पैसे दिलवाए गए थे, उस युवक ने आत्महत्या कर ली तो पैसे संतोष के बेटे को चुकाने पड़े, क्योंकि उसी ने ही युवक को पैसे दिलवाए थे। संतोष ने पैसे चुकाने के लिए उनकी गाड़ी और दूसरे सामान को बेचना पड़ा। अब परिवार के आर्थिक समीकरण बिगड़ चुके हैं और दोनों बेटे कर्ज चुकाने की खातिर दिहाड़ी-मजदूरी कर रहे हैं। फिलहाल उसका एक बेटा राजमिस्त्री का काम करता है तो दूसरा बेटा भी मजदूरी का ही काम करता है।
सुखद एहसास है
संतोष पूरी तरह से अनपढ़ है लेकिन वह अब हर रोज 300 से 500 रुपये कमाकर अपने परिवार की बैसाखी बन गई हैं। संतोष का कहना है कि वह मौसम के हिसाब से जो सब्जी मार्केट में आती है, उसे ही बेचती हैं। सुबह से शाम तक रेहड़ी लगा वह अपने पोता-पोती के लिए दूध और दूसरी खाने-पीने की चीजों का इंतजाम कर लेती हैं। इससे उन्हें सुखद अहसास होता है।