मुस्लिमों सहित 251 का करा चुके अंतिम संस्कार
जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के सिटी मैनेजर रवि भारती की ऐसा कोरोना योद्धा है, जो अब तक 251 शवों का दाह संस्कार करा चुके हैं। रवि भारती ने रेयाज खान नामक एक समाजसेवी के माध्यम से अब तक 58 मुस्लिम समुदाय के मृत शरीर को दफनाने का भी काम किया। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। रवि भारती ने शहर में कोरोना से पहली बार 4 जुलाई को दो शव को दाह संस्कार कराया। इस दौरान बर्निंग घाट पर जमकर हो हंगामा हुआ, लेकिन किसी तरह पुलिस व विशेष पदाधिकारी कृष्ण कुमार का हर तरह से सहयोग करने के कारण ही आज तक उन्होंने 251 कोरोना से मरे व्यक्तियों का दाह संस्कार कराया। इनमें से शनिवार यानी 19 सितंबर तक 58 मुस्लिम समुदाय के लोगों को विभिन्न कब्रिस्तान में दफनाया गया।
हंगामे से भाग गए कर्मचारी तक
मुस्लिम समुदाय के लोगों को दफनाने में रेयाज खान का बहुत ही बड़ा योगदान है। रेयाज कहते हैं कि प्रारंभिक दौर में साकची और धतकीडी कब्रिस्तान में थोड़ा परेशानी हुई, लेकिन लोगों को समझाने के बाद मामला शांत हो गया। रवि भारती कहते हैं कि कब्रिस्तान में तीन बाहरी लोगों को भी दफनाया गया। जिसमें से एक चक्रधरपुर, वेस्ट बोकारो तथा सरायकेला के मृतक शामिल हैं। स्वर्णरेखा बर्निंग घाट हो या बाबूडीह क्रिश्चयन कब्रिस्तान, धतकीडीह कब्रिस्तान में जमकर हंगामा भी हुआ। ऐसे स्थिति में दाह संस्कार या दफनाने वाले कर्मचारी काम छोड़कर भाग जाते थे। किसी तरह अपने जेब से पैसे देकर दाह संस्कार में लगे लोगों को बुलाकर, खुशामद कर काम कराया। रवि कहते हैं कि इस दौरान अब तक मेरे जेब से 35000 रुपये लग गए।
बच्चे सैटल्ड, खुद दाह संस्कार कराते हैं
कोरोना काल में ऐसे ही मानवता के पुजारी हैं बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त कैशियर सी. गणेश राव। राव
भी अपना सर्वस्व भूल कर शाम पांच बजे से सभी मृतकों का अंतिम संस्कार होने तक डटे रहते हैं। गणेश राव बताते हैं कि उन्हें समाजसेवा की प्रेरणा पारसी समाजसेवी मेहर मदन (मेहरनोस माडेन) से मिली। वे भी बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी थे। मेहर मदन के पिता स्व.एमडी मदन ने ही जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कालेज व एमजीएम मेडिकल कालेज की स्थापना की थी। बहरहाल, उनके परिवार में दो बेटे व एक बेटी है। बेटी की शादी हो गई। बड़ा बेटा साकची में दवा का थोक विक्रेता है। जबकि छोटा बेटा 10 साल से अमेरिका में है। वह वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। श्मशान घाट की सेवा को वह ईश्वर की कृपा मानते हैं।
कोलकाता से मिस्त्री लाकर फर्नेस ठीक कराई
68 वर्षीय राव बताते हैं कि जमशेदपुर में पहली बार चार जुलाई को दो कोरोना संक्रमित की मौत हुई थी। आसपास की बस्ती की महिलाएं, पुरुष, बच्चे घाट के पास जुट गए थे। पथराव भी हुआ। बस्तीवासियों की धमकी और कोरोना संक्रमण के डर से उनके यहां के सभी कर्मचारी भाग गए थे। समस्या हुई कि दाह संस्कार हो कैसे। जिला प्रशासन बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट से दो कर्मचारियों को लेकर आया, लेकिन वे भी शव को छूने से डर रहे थे। ऐसे में उन्होंने खुद इलेक्ट्रिक फर्नेस में दोनों शवों को डाला। इससे कर्मचारियों का हौसला भी बढ़ा कि इससे कुछ नहीं होता। इसके बाद तो सबकुछ अपने आप होने लगा। घाट में चार फर्नेस है। इसी बीच दो फर्नेस खराब हो गए, तो मेरे भी हाथ-पैर फूल गए। अंतिम संस्कार कराकर मैं रात को अपनी कार से कोलकाता निकल गया और सुबह-सुबह मिस्त्री लेकर पहुंच गया। दोपहर तक दोनों फर्नेस ठीक हो गए। सरकार से हमें कोई पैसा नहीं मिलता है। सब कुछ समाजसेवियों के भरोसे चल रहा है।
93 बार कर चुके रक्तदान
गणेश राव मास्क या पीपीई किट भी नहीं पहनते। बस दिखावे के लिए चेहरे पर एक रुमाल बांध लेते हैं। इनका कहना है कि मैं इस बीमारी को सर्दी-खांसी जैसा समझता हूं, लोगों ने हौवा बना दिया है। बस सावधान रहें, सचेत रहें, बेवजह डरे नहीं। मेरा अनुभव बताता है कि आधे से ज्यादा लोग डर या दहशत से मरे हैं। 60 वर्ष की उम्र तक 93 बार रक्तदान भी कर चुके राव कहते हैं कि वे दूसरों से भी कहते हैं कि आप आएं, सेवा करें, कुछ नहीं होगा। हर दिन कोरोना संक्रमितों के साथ रहने के बावजूद उन्हें कभी यह छू भी नहीं पाया। उन्हें किसी तरह की बीमारी नहीं है, लिहाजा आज तक कोई दवा नहीं ली।