जयपुर. शहरी सरकार का कार्यकाल आज खत्म हो जाएगा। इन पांच सालों में एक कार्यकारी महापौर समेत चार महापौर ने शहर के लिए काम किया। जयपुर नगर निगम में यह पहली बार है, जब एक कार्यकाल में चार महापौर रहे। सोमवार को महापौर का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही शहरी सरकार चलाने का जिम्मेदारी प्रशासक को सौंप दी जाएगी। इसके साथ ही महापौर, उप-महापौर, विभिन्न समितियों के चेयरमैन और पार्षद शहरी सरकार से दूर हो जाएंगे। परिसीमन के बाद नगर निगम के चुनाव होने तक प्रशासक ही शहरी सरकार की सभी व्यवस्थाओं को देखेंगे। यह पहली बार होगा, जब शहरी सरकार से जनप्रतिनिधि बाहर होंगे और निगम को चलाने की पूरी जिम्मेदारी अधिकारियों के कंधे पर होगी।
बीते पांच सालों में शहरी सरकार के नुमाइंदों ने शहर में विकास में नाम पर करीब 1100 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। हालांकि आज भी शहरवासी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। सीवरेज की समस्या, डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण से लेकर सडक़ों की सफाई का ढर्रा अब तक सही नहीं हो पाया है। जबकि सबसे ज्यादा खर्चा शहरी सरकार ने इन्हीं पर किया है। इस बोर्ड में कुछ काम ऐसे भी हुए, जिनसे शहर की सूरत बदलने का दावा किया गया, वहीं कुछ ऐसे घटनाएं भी घटीं, जिनकी वजह से जयपुर बदनाम भी हुआ।
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सर्वाधिक विवाद इसी बोर्ड में
पहली बार एक बोर्ड में तीन महापौर रहे। जो भी महापौर बना, उसने समितियों के हर बार चेहरे बदले। संख्या भी घटाते-बढ़ाते रहे। नाहटा ने जिन पार्षदों को चेयरमैन बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दीं, लाहोटी ने उनमें से कई पार्षदों को चेयरमैन तो बना दिया, लेकिन कद इतना छोटा कर दिया कि कुछेक चेयरमैन तो अपनी ऑफिस में ही नहीं बैठे। जब लाटा महापौर बने तो उन्होंने कांग्रेस के साथ-साथ उन भाजपा के पार्षदों का भी ध्यान रखा, जिन्होंने कुर्सी तक पहुंचाने में उनकी सहायता की।
पहली बार एक बोर्ड में तीन महापौर रहे। जो भी महापौर बना, उसने समितियों के हर बार चेहरे बदले। संख्या भी घटाते-बढ़ाते रहे। नाहटा ने जिन पार्षदों को चेयरमैन बनाकर बड़ी जिम्मेदारी दीं, लाहोटी ने उनमें से कई पार्षदों को चेयरमैन तो बना दिया, लेकिन कद इतना छोटा कर दिया कि कुछेक चेयरमैन तो अपनी ऑफिस में ही नहीं बैठे। जब लाटा महापौर बने तो उन्होंने कांग्रेस के साथ-साथ उन भाजपा के पार्षदों का भी ध्यान रखा, जिन्होंने कुर्सी तक पहुंचाने में उनकी सहायता की।
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