फाल्गुन पूर्णिमा पर सुबह स्नान—दान और पूजा—अर्चना होती है जबकि शाम को होलिका दहन की परंपरा है।ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि पूर्णिमा तिथि का स्वामी चंद्रमा होता है। पूर्णिमा पर किए गए शुभ काम का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस दिन चंद्रमा अपनी सौलह कलाओं के साथ होता है इसलिए यह पूर्ण प्रभावी रहता है। यही कारण है कि इस तिथि को पर्व कहा गया है।
पूर्णिमा के दिन सूर्य और चन्द्र एक—दूसरे के ठीक सामने होते हैं। ग्रहों की इस स्थिति को ज्योतिष में समसप्तक योग कहा गया है। पूर्णिमा पर सूर्य, चंद्रमा, शिवजी के साथ ही माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु, भगवान नरसिंह और श्रीकृष्ण की भी पूजा की जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा पर चंद्र पूजन का सर्वाधिक महत्व है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक चन्द्रमा का जन्म फाल्गुन माह में ही हुआ था।
चंद्रमा को मन, धन—संपत्ति, वैभव आदि का कारक माना गया है। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा पर शाम को चंद्र देव को जल अर्पित करना चाहिए। चंद्र देव के बीज मंत्र ओम श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्राय नम: या ओमकार मंत्र ओम नम: शिवाय का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए। इस दिन किए गए दान का अक्षय फल मिलता है।
फाल्गुन पूर्णिमा का मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 28 मार्च: रात 03 बजकर 27 मिनट से
पूर्णिमा तिथि का समापन 29 मार्च: रात 12 बजकर 17 मिनट पर
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत, स्नान दान— 28 मार्च को दिनभर
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 28 मार्च: रात 03 बजकर 27 मिनट से
पूर्णिमा तिथि का समापन 29 मार्च: रात 12 बजकर 17 मिनट पर
फाल्गुन पूर्णिमा व्रत, स्नान दान— 28 मार्च को दिनभर