जयपुर

ऐसे हुआ था धरती का विनाश

क्या आपको पता है कि पृथ्वी यानि हमारी धरती का सबसे विनाशकारी दिन कौन-सा था। नहीं, तो हम बताएंगे कि वो दिन कौन-सा रहा जो पृथ्वी के विनाशकारी दिनों में से एक है। हाल ही में वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर सबसे विनाशकारी दिनों में से एक के बारे में वैज्ञानिकों को नए सबूत मिले हैं।

जयपुरSep 12, 2019 / 02:12 pm

Neeru Yadav

ऐसे हुआ था धरती का विनाश

क्या आपको पता है कि पृथ्वी यानि हमारी धरती का सबसे विनाशकारी दिन कौन-सा था। नहीं, तो हम बताएंगे कि वो दिन कौन-सा रहा जो पृथ्वी के विनाशकारी दिनों में से एक है। हाल ही में वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर सबसे विनाशकारी दिनों में से एक के बारे में वैज्ञानिकों को नए सबूत मिले हैं। वैज्ञानिकों ने मैक्सिको की खाड़ी से मिले एक 130 मीटर की चट्टान के टुकड़े का परीक्षण किया है। इस चट्टान में मौजूद कुछ ऐसे तत्व मिले हैं जिनके बारे में बताया जा रहा है कि 6.6 करोड़ साल पहले एक बड़े ऐस्टरॉइड के पृथ्वी से टकराने के बाद यह जमा हुई थी। यह वही उल्कापिंड है जिसके कारण डायनोसोर खत्म हो गए। इस उल्कापिंड से टकराने से 100 किलोमीटर चौड़ा और 30 किलोमीटर गहरा गड्ढा बन गया था। ब्रिटिश और अमेरिकी रिसर्चर्स की की टीम ने इस गड्ढे यानि क्रेटर की जगह पर ड्रिलिंग करने में हफ्तों लगाए। करीब 200 किलोमीटर चौड़ा क्रेटर मैक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप में है जिसके सबसे अच्छे से संरक्षित इलाका चिकशुलूब के बंदरगाह के पास है। रिसर्चर्स ने जिस चट्टान का अध्ययन किया वो सेनोजोइक युग का प्रमाण बन गया है जिसे मेमल युग के नाम से जाना जाता है ये चट्टान बहुत से बिखरे हुए तत्वों का मिश्रण है। ये इस तरह से बंटे हुए हैं कि इनके अवयवों की पहचान हो जाती है। नीचे से पहले 20 मीटर में ज़्यादातर कांचदार मलबा है, जो गर्मी और टक्कर के दबाव के कारण पिघली चट्टानों से बना है. इसका अगला हिस्सा पिघली चट्टानों के टुकड़े से बना है यानी उस विस्फोट के कारण जो गरम तत्वों पर पानी पड़ने से हुआ था. ये पानी उस समय वहां मौजूद उथले समंदर से आया था. शायद उस समय इस उल्का पिंड के गिरने के कारण पानी बाहर गया लेकिन जब ये गर्म चट्टान पर वापस लौटा, एक तीव्र क्रिया हुई होगी. ये वैसा ही था जैसा ज्वालामुखी के समय होता है जब मैग्मा मीठे पानी के सम्पर्क में आता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रभाव के पहले एक घंटे में यह सभी घटनाएं घटी होंगी लेकिन उसके बाद भी पानी बाहर आकर उस क्रेटर को भरता रहा होगा.चट्टान के भीतरी भाग से सूनामी के प्रमाण भी मिले हैं. चट्टान के अंदर 130 मीटर पर सुनामी के प्रमाण मिलते हैं. चट्टान में जमीं परतें एक ही दिशा में हैं और इससे लगता है कि बहुत उच्च उर्जा की किसी घटना के कारण इनका जमाव हुआ होगा.दिलचस्प बात यह है कि रिसर्च टीम को चट्टान में कहीं भी सल्फ़र नहीं मिला है. यह आश्चर्य की बात है क्योंकि यह उल्का पिंड सल्फ़र युक्त खनिजों से बने समुद्री तल से टकराया होगा.किसी कारण से सल्फ़र वाष्प में बदल कर ख़त्म हो गया लगता है. यह नतीजा उस सिद्धांत का भी समर्थन करता है कि डायनासोर पृथ्वी से कैसे विलुप्त हुए थे.
सल्फ़र के पानी में घुलने और हवा में मिलने से मौसम काफ़ी ठंडा हो गया होगा. मौसम के इतना ठंडा हो जाने से हर तरह के पौधों और जानवरों के लिए जीवित रहना बेहद मुश्किल हुआ होगा.इस प्रक्रिया से निकले सल्फ़र की मात्रा का अनुमान 325 गीगा टन है. यह क्रैकटोआ जैसे ज्वालामुखी से निकलने वाली मात्रा से बहुत ज़्यादा है. क्रैकाटोआ से निकलने वाली सल्फ़र की मात्रा भी मौसम को काफ़ी ठंडा कर सकती.” मेमल्स इस आपदा से उबर गए लेकिन डायनाडोर इसके प्रभाव से नहीं बच पाए.
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