— हर दिन अलग—अलग माता की होगी पूजा जयपुर। चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2020) बुधवार से शुरू होंगे। नवरात्र में मां दुर्गा (maa durga) के 9 स्वरूपों की पूजा—अर्चना होगी। पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होगी। वहीं दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन माता कुष्मांडा और पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा होगी। छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नवें दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा—अर्चना की जाएगी।
ज्योतिषाचार्य रवि शर्मा ने बताया कि मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। ये पर्वतराज हिमालय के घर उत्पन्न हुई। माता शैलपुत्री वृषभ पर आरूढ़ है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं।
नवरात्र में दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा—अर्चना होगी। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है।
नवरात्र में तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा होती है। इनके मस्तक में घण्टी के आकार का अर्धचन्द्र है। जिसके कारण इनका नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनका वाहन सिंह है। इनकी उपासना से सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
चौथे दिन माता कूष्माण्डा की पूजा अर्चना होती है। ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्र में चौथे दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्र में पांचवें दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है।
छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा—अर्चना की जाती है। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। नवरात्र में पांचवें दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है।
छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा—अर्चना की जाती है। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं।
नवरात्र में सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं।
आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना होती है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी दोष धुल जाते हैं। नवरात्र में आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा—अर्चना होती है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना होती है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी दोष धुल जाते हैं। नवरात्र में आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा—अर्चना होती है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।