जयपुर, 25 जुलाई मानवशास्त्रीय पुरातत्वविद् डॉ. सोनाली गुप्ता का कहना है कि पुरातत्व केवल खुदाई के बारे में नहीं है बल्कि यह भी समझना चाहिए कि सीखने और सिखाने का संचार कैसे हुआ। स्थानीय समुदाय का अध्ययन ऑब्जेक्ट के रूप में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि समुदाय की भावना के निर्माण के लिए पुरातात्विक प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। रविवार को ‘सहारा से हिमालय तक की यात्रा:अतीत की खुदाई’ विषय पर आयोजित वर्चुअल वार्ता में उनका कहना था कि पुरातत्वविदों और मानवशास्त्रियों को विरासत के संरक्षण के लिए सरकार और लोगों के बीच एक माध्यम होना चाहिए। इस क्षेत्र में सक्रियता बहुत महत्वपूर्ण है। इस वार्ता का आयोजन आईएएस एसोसिएशन राजस्थान ने अपने फेसबुक पेज पर किया था। आईएएस एसोसिएशन राजस्थान की सचिव मुग्धा सिन्हा के साथ बात करते हुए उन्होंने अपनी यात्रा की तस्वीरों और यादों के माध्यम से एक कहानी को साझा किया। उन्होंने कहा कि दुर्लभ संसाधनों को महत्व देना चाहिए, जो कि पहले के सामान्य जीवन के दौरान आसानी से उपलब्ध थे। इसी तरह बेहतर कल के निर्माण के लिए युवाओं को पुरातात्विक अध्ययन में शामिल किया जाना चाहिए। पुरातत्व हमें अतीत से और लोगों से जोड़ता है। यह प्राचीन लोगों को भी एक पहचान देता है, जिससे कि कोई गुमनाम न रह जाए। उन्होंने यह भी कहा कि द आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया विरासत संरक्षण के लिए अपना काम कर रहा है, लेकिन नागरिकों की भागीदारी आगे सुनिश्चित करेगी कि काम बेहतर तरीके हो पाए। निजी संस्थानों को जागरुकता पैदा करने, कार्यशालाओं का आयोजन करके स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देने के साथ लोगों को संवेदनशील बनाने के लिए एक सहज संबंध बनाने के कार्य से जोडऩा चाहिए। गौरतलब है कि राज्य सरकार के कला और संस्कृति विभाग ने राजस्थान में पुरातात्विक स्थलों के बारे में सामुदायिक जागरुकता बढ़ाने और इतिहासकारों, छात्रों, पुरातत्व निदेशालय के कर्मचारियों और पत्रकारों को पुरातात्विक खंडहरों और साइटों पर प्रशिक्षण देने के लिए सहयोग करने की योजना बनाई है।
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