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गंभीर बीमारी से उन्होंने छह साल तक संघर्ष किया। जब ठीक होकर लौटे तो उन्होने पेड़ों की देखरेख और ऑक्सीजोन को विकसित करने की ठानी। करीब 8 साल की कड़ी मेहनत के बाद उनका प्लांटेशन लहलहाने लगा है। प्रोफेसर श्रीवास्तव कहते है कि जब वे स्वस्थ हुए तो उनके मन में विचार आया कि प्रकृति प्रदत जीवन को प्रकृति को ही लौटाया जाए।इस प्रकार लगाए गए पेड़
कुडक़ानार में प्रोफेसर श्रीवास्तव ने इमारती और फलदार पेड़ लगाए हैं। इसमें काजू, आंवला, आम, जामुन, इमली, अमरूद चिकू जैसे फलदार पेड़ लगाए है। यहां पर काजू और आम के पेड़ में फल भी लगना शुरू हो गया है। इसके अलावा साल, सागौन, खम्हार और रीठा के पेड़ भी लगे हुए हैं। अब यहां पर लीची के पौधे लगाने की तैयारी चल रही है। फलदार पेड़ होने के कारण यहां पर प्रवासी पक्षियों की चहचाहट भी सुनाई देती है।
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ऑक्सीजोन तैयार करने रोजाना 44 किमी का सफर
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि ऑक्सीजोन तैयार करने के लिए रोजाना 44 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। दो साल पहले नेगीगुड़ा के पास इंद्रवती नदी पर पुल नहीं बना था। ऐसे में बस्तर होकर कुडकानार जाना पड़ता है। जगदलपुर से बस्तर होकर कुडकानार करीब 22 किलोमीटर पड़ता है। ऐसे में रोजाना आने-जाने के लिए 44 किलोमीटर पड़ता था। वहीं गर्मी के दिनों में नदी में पानी कम होने पर नदी पार कर आना-जाना करता था। अब पुल बनने से आने-जाने में काफी सहुलियत होती है।