मौत से जीती जंग: कोमा से लौटकर इस शख्स ने 5 एकड़ में 250 पेड़ लगाकर बनाया ऑक्सीजोन

– छत्तीसगढ़ में प्रोफेसर ने मौत से जीती जंग- प्रकृति को उपहार के तौर पर लौटाई हरियाली- 5 एकड़ में फलदार पेड़ लगाकर बनाया ऑक्सीजोन

जगदलपुर/मनीष साहू. छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में धरमपुरा पीजी कालेज में पदस्थ प्रोफेसर विजय कुमार श्रीवास्तव लंबे समय तक मानसिक व शारीरिक तौर पर बीमारी से जूझते हुए कोमा में चले गए थे। जानलेवा बीमारी व कोमा से उबरने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी के मायने को पूरी तरह से बदल दिया। जिंदगी की जंग जीतने की खुशी को बांटने के लिए उन्होंने पांच एकड़ से अधिक जमीन को हरियाली की चादर ओढ़ा दी है। अपने बूते पर उन्होंने प्राकृतिक ऑक्सीजोन तैयार कर दिया है। शहर के पास स्थित कुड़कानार में अपनी पुश्तैनी 5 एकड़ जमीन पर 250 से अधिक इमारती और फलदार पेड़ रोप दिए हैं।
पत्रिका से चर्चा में प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि करीब 10 साल पहले वे अचानक बीमार पड़े और जगदलपुर में अपना उपचार करवाने लगे। चिकित्सकों की लापरवाही व गलत उपचार की वजह से उनके आंखों की रोशनी कम होने लगी, इंफेक्शन भी हो गया। दवाओं के साइड इफेक्ट से उनके ब्रेन पर ब्लड का थक्का जम गया और वे लंबे समय के लिए कोमा में चले गए थे।

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गंभीर बीमारी से उन्होंने छह साल तक संघर्ष किया। जब ठीक होकर लौटे तो उन्होने पेड़ों की देखरेख और ऑक्सीजोन को विकसित करने की ठानी। करीब 8 साल की कड़ी मेहनत के बाद उनका प्लांटेशन लहलहाने लगा है। प्रोफेसर श्रीवास्तव कहते है कि जब वे स्वस्थ हुए तो उनके मन में विचार आया कि प्रकृति प्रदत जीवन को प्रकृति को ही लौटाया जाए।

इस प्रकार लगाए गए पेड़
कुडक़ानार में प्रोफेसर श्रीवास्तव ने इमारती और फलदार पेड़ लगाए हैं। इसमें काजू, आंवला, आम, जामुन, इमली, अमरूद चिकू जैसे फलदार पेड़ लगाए है। यहां पर काजू और आम के पेड़ में फल भी लगना शुरू हो गया है। इसके अलावा साल, सागौन, खम्हार और रीठा के पेड़ भी लगे हुए हैं। अब यहां पर लीची के पौधे लगाने की तैयारी चल रही है। फलदार पेड़ होने के कारण यहां पर प्रवासी पक्षियों की चहचाहट भी सुनाई देती है।

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ऑक्सीजोन तैयार करने रोजाना 44 किमी का सफर
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि ऑक्सीजोन तैयार करने के लिए रोजाना 44 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। दो साल पहले नेगीगुड़ा के पास इंद्रवती नदी पर पुल नहीं बना था। ऐसे में बस्तर होकर कुडकानार जाना पड़ता है। जगदलपुर से बस्तर होकर कुडकानार करीब 22 किलोमीटर पड़ता है। ऐसे में रोजाना आने-जाने के लिए 44 किलोमीटर पड़ता था। वहीं गर्मी के दिनों में नदी में पानी कम होने पर नदी पार कर आना-जाना करता था। अब पुल बनने से आने-जाने में काफी सहुलियत होती है।

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