जबलपुर

यहां खूब होता है सिंघाड़ा, लेकिन फायदा ले रहे गुजरात-महाराष्ट्र

जबलपुर जिले में प्रसंस्करण इकाइयां नहीं होने से अधिकतर फसल चली जाती है बाहर
 

जबलपुरNov 12, 2020 / 08:09 pm

shyam bihari

jabalpur-singhada

 

यह है स्थिति
– 4 हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में पैदावार
– एक हेक्टेयर में 130 से 140 क्विंटल उपज।
– 2 हजार से ज्यादा किसान जुड़े।
– सिहोरा देश की सबसे बड़ी मंडियों में शामिल।
– गुजरात सहित दूसरे राज्यों में उपज की खपत।
– अभी 30 से 35 रुपए किलो तक कीमत।

जबलपुर। सर्दी शुरू होते ही सिंघाड़ा जबलपुर के बाजार में आने लगा है। इसकी फसल तैयार हो गई है। उपज निकालकर किसानों ने इसकी बिक्री शुरू कर दी है। जबलपुर प्रदेश के बड़े सिंघाड़ा उत्पादक जिलों में शामिल है। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की कमी के कारण ज्यादातर उपज गुजरात चली जाती है। कुछ अन्य राज्यों में भी इसकी मांग रहती है। वहां इससे कई प्रकार की खाद्य वस्तुएं बनाई जाती हैं। इसी प्रकार शहर और आसपास के जिलों में भी इसकी सप्लाई प्रारंभ हो गई है। जिले में करीब 4 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंघाड़ा की खेती होती है। हर साल 45 हजार मीट्रिक टन से अधिक सिंघाड़ा की पैदावार होती है। इतनी अधिक मात्रा में उत्पादन जरूर होता है लेकिन खपत बहुत कम है। जिले और आसपास के इलाकों में सिंघाड़ा को उबालकर इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इससे बनने वाले दूसरे खाद्य पदार्थ यहां नहीं बन पाते। क्योंकि इसकी प्रसंस्करण इकाइयां यहां मौजूद नहीं हैं। इसलिए गुजरात, महाराष्ट्र और कुछ दूसरे राज्यों में यह चला जाता है।

अक्टूबर में फसल की निकासी प्रारंभ हो जाती है लेकिन इस बार यह लेट हो गई। उसमें कीट का प्रकोप भी था। इसलिए कई किसानों को दोबारा बीज डालने पड़े। ऐसे में उपज भी देर निकली। इसलिए इस महीने और दिसंबर में पूरी उपज खेत एवं तालाबों से बाहर निकल जाएगी। इस बार भी किसानों को इसके अच्छे दाम मिलने की उम्मीद है।

सिंघाड़ा की फसल पानी में होती है। इसकी सबसे ज्यादा पैदावार सिहोरा, मझौली व पनागर क्षेत्र में होती है। इसी प्रकार कुंडम, पाटन, शहपुरा क्षेत्र में भी इसकी खूब पैदावार होती है। आमतौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 130 से 140 क्विंटल सिंघाड़ा की पैदावार होती है। इस साल भी सभी किसानों को लगभग इतनी उपज मिलने की संभावना है। सिंघाड़ा का अपना महत्व है। यह कई प्रकार के गुण अपने में समाहित किए है। इसके अनेक प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। हमारे यहां शिवरात्रि पर इसका आटा ज्यादा इस्तेमाल होता है। सभी प्रकार के उपवास में इसे व्रतधारी फलाहार के रूप में उपयोग करते हैं। गुजरात में इसके व्यंजन ज्यादा पसंद किए जाते हैं। वहां से इन्हें तैयार कर देशभर में भेजे जाते हैं।

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