कई गुना वसूली
इंजेक्शन की मांग बढऩे पर इसकी थोक दुकानों से सीधे कोरोना मरीज के नाम पर अस्पतालों को आपूर्ति की जा रही है। इससे फुटकर दुकानों से बिक्री का कमीशन भी नहीं लग रहा है। जानकारों ने बताया कि कोरोना से पहले अंकित मूल्य से कम कीमत पर खुले बाजार में यह इंजेक्शन उपलब्ध था। अब सीधे स्टॉकिस्ट बेच रहे हैं। लेकिन इससे मरीजो को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। उल्टा निर्धारित मूल्य के दोगुने और उससे भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। अलग-अलग कंपनी के इंजेक्शन में मुनाफा की दर में भी कमीशनबाजी के कारण काफी अंतर आ रहा है।
हर स्तर पर कमीशन से बढ़ रही कीमत
कोरोना इंजेक्शन की कालाबाजारी रोकने के लिए प्रशासन ने कई चेक प्वाइंट लगाए हैं। इससे इंजेक्शन मिलने की प्रक्रिया कठिन होने के साथ ही उसकी कीमत भी बढ़ गई है। कोरोना मरीजों के परिजन के अनुसार स्टॉकिस्ट 22 सौ रुपए का रेमडेसीविर इंजेक्शन 34 सौ रुपए में निजी अस्पतालों को दे रहे हैं। इसे अस्पताल मरीजों को 54 सौ रुपए में बेच रहे हैं। गम्भीर मरीजों को यदि इंजेक्शन की ज्यादा आवश्यकता है तो तीन से चार गुना तक कीमत बढ़ाकर दे रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी से लेकर ड्रग इंसपेक्टर की निगरानी के बावजूद रेमडेसीविर में मुनाफाखोरी का खेल खुलेआम चल रहा है।
चस्पा हो मरीज के नाम के साथ इंजेक्शन सूची
जानकारों के अनुसार कोरोना मरीज की हालत और जरूरत का परीक्षण और जांच रिपोर्ट के सत्यापन के बाद संबंधित अस्पताल जहां वह भर्ती है, को रेमडेसीविर इंजेक्शन पहुंचाने का प्रशासन का दावा है। इसकी सूचना भी जारी की जा रही है कि किस अस्पताल को कितने इंजेक्शन जारी हुए। लेकिन मरीज और उसके परिजन को यह पता नहीं चल पाता है, उस कोटे में उसका इंजेक्शन भी शामिल है या नहीं। इसकी सुविधा के लिए प्रतिदिन अस्पतालों को आवंटित इंजेक्शन के साथ उन मरीजों के नाम की सूची भी सार्वजनिक करना चाहिए, जिसके एवज में अस्पताल को इंजेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं। प्रत्येक कोविड अस्पताल को प्रतिदिन के आवंटन में मरीजों के नाम के साथ रेमडेसिविर इंजेक्शन की मात्रा का उललेख करते हुए सूची भी वहां चस्पा होना चाहिए।
बिल नहीं दे रहे, अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे
इंजेक्शन के बिल में भी खेल किया जा रहा है। ज्यादातर निजी अस्पताल रेमडेसिविर इंजेक्शन की मनमानी कीमत वसूल रहे हैं। लेकिन रेमडेसिविर इंजेक्शन का बिल नहीं दे रहे हैं। इससे पीडि़त शिकायत नहीं कर पा रहे है। प्रशासनिक और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी लिखित शिकायत और बिल ना होने की आड़ लेकर निजी अस्पतालों में कार्रवाई को लेकर हाथ बांधे बैठे हैं।