इससे पहले 23 अगस्त को मेडिकल कॉलेज के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कोविड-19 सेंटर से सुबह एक मरीज ने छलांग लगाने की कोशिश की, एक मरीज खिड़की से निकलकर अस्पताल की तीसरी मंजिल पर आकर कूदने के लिए बैठा था। इसी बीच अस्पताल कर्मियों को पता चल गया और उसे बचा लिया। यह वार्ड में तीसरी मंजिल पर है जिसमें मरीज भर्ती था। घटना के बाद हड़कंप मच गया। मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने इस तरह के मामलों से बचने के लिये पुलिस बल तैनात किया गया था।
घटना की सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस ने मरीज को समझाने का प्रयास किया और दो अस्पताल कर्मियों को मरीज को उतारने भेजा। दोनों कर्मचारी पीपीइ किट पहनाकर आइसोलेशन वार्ड में पहुंचे और मरीज को ऊपर खीच लिया। पुलिस और अस्पताल के कर्मचारियों ने मरीज के कूदने को लेकर बचाले की तैयारियों में जुट गये। इसके लिये चार लोगों को बिल्डिंग के नीचे कंबल पकड़कर खड़ा कर दिया गया। जिससे अगर मरीज कूदा जाए, तो उसकी जान बचाई जा सके। संक्रमित मरीज छह दिन पहले ही अस्पताल आया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की इस घटना के समय वार्ड में कोई कर्मचारी नहीं था।
काउंसलिंग की जरूरत
दरअसल कोरोना संक्रमित मरीज भर्ती होने के बाद तनाव में आ जाते हैं। अपने घर और अस्पताल के वातावरण से मरीजों की मनोदशा बिगड़ने लगती है। कई दिनों से वार्ड में रह रहे मरीज धीरे धीरे अवसाद का शिकार होने लगते हैं। इससे पहले भी एक और मरीज ने तीसरी मंजिल से कूदने का प्रयास किया था। ऐसे सरकार को चाहिये कि कोरोना संक्रमित मरीजों की काउंसलिंग के व्यवस्था की जाए, जिससे इस तरह की स्थिति निर्मित नहीं हो। फिलहाल प्रशासन ने किसी काउंसलर की व्यवस्था तो नहीं पर कोरोना वार्ड के पास पुलिस बल तैनात कर दिया है।