मां नर्मदा का आंचल
जबलपुर स्थित नर्मदा के प्राचीनतम् तट तिलवाराघाट के ठीक सामने पहाड़ी पर बना है, त्रिपुरी स्मारक…। नजर पड़ते ही इसका वैभव बात करता हुआ नजर आता है। स्मारक पर बने डोम में युवा संगीत की सरगम छेड़ते हैं। यह वही स्थान है, जहां आज से करीब 82 साल पहले सन 1939 में कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन हुआ था। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए महात्मा गांधी के प्रतिनिधि के रूप में पट्टाभि सीमा रमैया चुनाव मैदान में थे। दूसरी ओर नेताजी सुभाषचंद बोस थे। इतिहास साक्षी है कि इसी भूमि पर नेताजी ने महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को हराकर शानदार जीत दर्ज की और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे। यहां आज भी चरखे वाला तिरंगा लहराता है।
104 डिग्री बुखार में आए थे नेताजी
आज भी युवाओं के प्रेरणास्रोत माने जाने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस का हौसला भी चट्टान जैसा था। इस बात का जीवंत प्रमाण यह है कि नेता जी 104 डिग्री बुखार होने के बावजूद जबलपुर आए थे और त्रिपुरी अधिवेशन में शामिल देश भक्तों का हौसला बढ़ाया था। नेताजी के हौसले की इसी बुलंदी ने उन्हें बुलंद जीत भी दिलवाई थी। उन्होंने महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीता रमैया को पराजित किया था। कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नेताजी को मिली शानदार जीत का इजहार भी जबलपुर में शानदार अंदाज में किया था। कमानिया गेट के समीप से 52 हाथियों के रथ पर उनका विजयी जुलूस निकाला गया था।
उमड़ पड़ी थी भीड़
इतिहासविद अरुण शुक्ल के अनुसार जबलपुर में 1939 में हुए कांग्रेस के 52 वें अधिवेशन में नेताजी ने पट्टाभि सीतारमैया को 203 मतों से पराजित किया था। सीता रमैया महात्मागांधी के पसंदीदा उम्मीदवार थे। 52वें अधिवेशन में शानदार जीत की खुशी में संस्कारधानी वासियों नेताजी को 52 हाथियों के रथ पर बैठाकर घुमाया था। इसे देखने के लिए शहर व आसपास के गावों से हजारों की तादाद में लोग पहुंचे थे। हालांकि तेज बुखार की वजह से नेताजी शिविर व जुलूस में शामिल नहीं हो पाए थे। शिविर में ही डॉ.वीआर सेन व डॉ. एम. डिसिल्वा उनका इलाज कर रहे थे। उनके अस्वस्थ होने के कारण, जुलूस में उनकी फोटो रखी गई थी। नेताजी की लोकप्रियता का आलम यह था कि उस फोटो को ही देखने के लिए ें हजारों की संख्या में लोग जुलूस में पहुंचे थे।
तीन बार आए नेताजी
इतिहासविद राजकुमार गुप्ता के अनुसार नेताजी सुभाषचंद्र बोस को 30 मई 1932 को सिवनी से केन्द्रीय जेल जबलपुर लाया गया था। इसके बाद वे 18 फरवरी 1933 को जबलपुर आए, डॉ. एचएन मिश्र ने उनके स्वास्थ्य की जांच की तो उनके फेफड़ों में इन्फेशन व आंतों में टीबी की शिकायत सामने आई। इसके बाद यहीं से उन्हें मुम्बई होते हुए यूरोप भेजा गया था। 1939 में वे त्रिपुरी अधिवेशन में भाग लेने आए तब भी तेज ज्वर से पीडि़त थे। तेज बुखार के कारण ही वे शिविर में शामिल नहीं हो सके थे। जबलपुर जेल में उनका स्मारक बनाया गया है, जेल व जबलपुर के मेडिकल कॉलेज का नामकरण उन्हीं की याद में किया गया है। इसके अलावा कमानियागेट भी अधिवेशन की याद में बनाया गया था।
असहनीय दर्द का जिक्र
सेट्रल जेल से एक ऐसा पत्र मिला है, जिसे नेताजी ने सिवनी निवासी मित्र देशपांडे को लिखा था। पत्र में उन्होंने अपनी बीमारी गॉल ब्लेडर में दर्द व इवोडियम का जिक्र किया था, इसके चलते खाना खाने के बाद उन्हें असहनीय पीड़ा होती थी। 13 मार्च 1933 को लिखे इस पत्र से पता लगता है कि वे असहनीय दर्द में थे। पत्र के माध्यम से उन्होंने बताया था कि वे वियना में रहकर इलाज करा रहे हैं।
बदहाली की कगार पर स्मारक
करीब 80 साल पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ऐतिहासिक जीत और कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन की याद में बना त्रिपुरी स्मारक बदहाली का शिकार है। तिलवारा की पहाड़ी पर बने स्मारक का पीछे का हिस्सा क्षतिग्रस्त होने लगा है। स्मारक की दरकती सीढिय़ां, आस-पास फैलीं झाडिय़ा इसकी दुर्गति और दुर्दशा की कहानी सुनाती नजर आ रही हैं। लोगों ने मांग उठाई थी कि इसके नीचे रिक्त पड़ी भूमि पर गार्डन बनाया जाए, लेकिन इतिहास को नजरंदाज करने जैसी भावना से यहां एमपीएसईबी का सब स्टेशन बनाया जा रहा है।