covid-19 pandemic: जब अपने भी शव नहीं छू रहे थे, तब इस व्यक्ति ने दिया कंधा और दी मुखाग्नि

कोरोना काल से जंग-किसी का रोजगार छिना, किसी से भाई का साथ छूटा, पर हिम्मत नहीं छोड़ी
 

<p>covid-19 pandemic</p>

दीपंकर रॉय@जबलपुर। कोरोना की दस्तक। लॉकडाउन और फिर संक्रमण के कहर के बीच किसी की नौकरी छिन गई। तो किसी का काम-धंधा ठप हो गया। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। जिंदगी की कश्मकस के बीच झटका उस वक्त लगा जब एक के पिता गम्भीर हो गए। एक का भाई हमेशा के लिए साथ छोडकऱ चला गया। संकट के कई मोर्चे पर एक साथ जूझने के बाद भी इन युवाओं के जेहन में बस पीडि़त मानवता की सेवा का जज्बा उबाल मारता रहा। कोरोना काल में जब अपने भी पराए जैसे हो गए थे ये युवा अपना दर्द छिपा दूसरे का दुख बांटने में लगे रहे। कोरोना के चलते जान गंवानों वालों के शवों को जब अपने भी छू नहीं रहे थे, इन्होंने कंधा दिया। अजनबी होकर भी कभी बेटा, कभी भाई, तो कभी पिता बनकर कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार किया। आठ महीने से ये युवा नि:स्वार्थ भाव से कोरोना मरीजों और उनके परिजनों की चुपचाप सेवा में जुटे हुए है।

 

‘संक्रमित की सेवा को ही माना धर्म’
कोरोना संकट काल में इन युवाओं ने संक्रमित की सेवा को ही धर्म माना। मोक्ष संस्था के आशीष ठाकुर के साथ मिलकर न केवल कोरोना संक्रमित का सुरक्षित तरीके से अंतिम संस्कार किया। बल्कि मृतक की धार्मिक परंपरा की पालना में भी सहयोग किया। जाति-धर्म के भेद से ऊपर उठकर हर वर्ग के कोरोना मरीज-परिजन को मदद पहुंचाई। छोटी-छोटी नौकरी और प्रतिदिन कमाने खाने वाले इन युवाओं की आय कम भले ही है, लेकिन कोरोना से पीडि़त लोगों की मदद में इनसे आगे कोई नहीं है। इन युवाओं की मदद से अभी तक करीब दो सौ कोरोना संक्रमित शव का अंतिम संस्कार किया गया है।

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