बैंकों के निजीकरण के खिलाफ बैंकर्स हड़ताल पर, 1000 करोड़ का लेन देन प्रभावित होने की आशंका

-दो दिन की है राष्ट्रव्यापी हड़ताल

<p>निजीकरण के खिलाफ बैंकर्स हड़ताल पर</p>
जबलपुर. बैंकों के निजीकरण के खिलाफ यूनाइडेट फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के आह्वान पर 9 यूनियन ने 15 मार्च और 16 मार्च 2021 को हड़ताल का ऐलान किया है। इसके तहत सोमवार को सैकड़ों की तादाद में बैंक कर्मी सिविक सेंटर स्थित इंदिरा गांधी उद्यान में एकत्र हुए और जमकर नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया।
बैंकों की दो दिवसीय हड़ताल सोमवार से शुरू हो गई। बैंक कर्मचारी सुबह कार्यालय पहुंचने की जगह सिविक सेंटर स्थित उद्यान में एकत्र हुए और दोपहर तक नारेबाजी करते रहे। यहां सभा भी हुई जिसमें बैंकर्स ने अपनी मांगे रखीं साथ ही केंद्र सरकार के निर्णय का जमकर विरोध किया। बैंकर्स की हड़ताल में महिला कर्मचारियों ने भी बढचढ़ कर हिस्सा लिया।
हड़ताल पर जाने से पूर्व स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक समेत कई सरकारी बैंकों ने अपने ग्राहकों को हड़ताल की वजह से कामकाज पर असर पड़ने की जानकारी दे दी थी। बैंकर्स ने ग्राहकों को बताया कि वे प्रस्तावित हड़ताल के दिन बैंकों और शाखाओं में बेहतर तरीके से कामकाज करने के लिए आवश्यक कदम उठा रहे हैं। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया।
बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण 2021 के दौरान कहा था कि केंद्र सरकार इस साल 2 सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण करेगी। सरकार इससे पहले 2019 में भारतीय जीवन बीमा निगम में आइडीबीआइ बैंक की बहुलांश हिस्सेदारी बेच चुकी है। पिछले 4 साल में 14 सार्वजनिक बैंकों का विलय भी किया गया है। इसके बाद फिलहाल देश में 12 सरकारी बैंक हैं। वहीं, दो बैंकों का वित्त वर्ष 2021-22 में निजीकरण होने के बाद इनकी संख्या 10 रह जाएगी।
ऐसे में यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने सरकारी बैंकों के निजीकरण के विरोध में हड़ताल के चलते सोमवार और मंगलवार को शहर के 152 बैंकों की विभिन्न शाखाओं में कोई लेन-देन नहीं होगा। बैंकों के बंद होने से आम लोगों को सबसे अधिक परेशानी हो रही है। दूसरा शनिवार और रविवार के चलते वैसे ही दो दिन बैंक बंद रहे। अब हड़ताल लोगों को दोहरी मुसीबत बढ़ गई।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस जबलपुर इकाई के उप-महासचिव राजेश कुमार कटहल के मुताबिक बैंकों के निजीकरण से देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। केंद्र सरकार सरकारी बैंकों को निजी हाथों में सौंपकर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाह रही है। इससे ना सिर्फ जनता परेशान होगी बल्कि जनता के जो रुपए बैंकों में है, वह भी सुरक्षित नहीं रहेंगे। विश्व के कई देशों के निजी बैंक इसका उदाहरण है, कमोबेश यही हाल भारत के बैंकों का होने वाला है।
संघ के उपसचिव राजेश के मुताबिक सरकार ने प्रस्ताव वापस लेने के लिए जब कोई आश्वासन नहीं दिया और वार्ता फेल हो गई। ऐसे में सोमवार 15 मार्च और 16 मार्च मंगलवार को देश भर के सरकारी बैंक दो दिवसीय हड़ताल पर चले गए हैं। इससे जबलपुर में ही 800 से 1000 करोड़ का लेन देन प्रभावित होगा। इसके लिए दोषी केंद्र सरकार है। उसकी नीतियों ने हमें सड़कों पर आने को मजबूर कर दिया है।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन की माने तो भारत सरकार द्वारा सरकारी बैंकों के निजीकरण की पहली कड़ी में 4 बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव संसद में पारित किया गया है। इसमें बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र एवं इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं। यह चारों बैंक अभी लाभ में चल रहे हैं, इसके बावजूद सरकार द्वारा निजीकरण का प्रस्ताव देना हमें बिल्कुल भी स्वीकार नहीं है।
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