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पत्रिका स्टिंग : ऐसे होती है अवैध कैटरिंग
ट्रेनों में अवैध कैटरिंग का धंधा कैसे तेजी से फलफूल रहा है और इसे कैसे संचालित किया जा रहा है इसे लेकर पत्रिका के स्टिंग में बड़ा खुलासा हुआ है। पहले आपको बताते हैं कि अवैध कैटरिंग आखिरकार ट्रेनों में की कैसे जा रही है। पहले अवैध कैटरिंग संचालक ट्रेन में यात्रा करते समय कोचों में खाने के पंपलेट डलवाते हैं। इन पंपलेट को डालवाने के लिए कैटरिंग संचालक लंबी दूरी से चलकर इटारसी की ओर आने वाले ट्रेनों में दूसरे शहर के युवकों को मोटी रकम देकर खाने के पर्चे ट्रेनों के कोचों में यात्रियों को बांटने के लिए देते हैं। पर्चों को स्लीपर और एसी कोचों में बांटा जाता है। इन पर्चों में सस्ते खाने के साथ ही मोबाइल नंबर होता है। मोबाइल पर फोन लगाकर कम पैसों में मिलने वाले खाने के लालच में यात्री खाना ऑर्डर करते हैं लेकिन इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं होता है कि जिस खाने का वो ऑर्डर दे रहे हैं वो खाने लायक है भी या नहीं।
रोजाना बेचा जाता है 60-80 हजार रुपए का खाना
पत्रिका के स्टिंग में अवैध कैटरिंग से जुड़े एक व्यक्ति ने खुलासा किया है कि स्टेशन के आसपास के होटल से खाना खरीदकर ही यात्रियों को सप्लाई किया जाता है। अवैध कैटरिंग के काम में कई लड़के जुड़े हुए हैं । उसने बताया कि अवैध कैटरिंग से रोजना करीब 60 से 80 हजार रुपए तक का खाना ट्रेनों में यात्रियों को बेचा जाता है। इतना ही नहीं जो लड़के पर्चे बांटते हैं उन्हें मोटा कमीशन दिया जाता है।
खुलेआम चल रहा है अवैध कैटरिंग का धंधा
बताया जाता है कि अवैध कैटरिंग का धंधा भोपाल और इटारसी सहित प्रदेश के कई स्टेशनों पर बिना खौफ के चल रहा है। अवैध कैटरिंग संचालक जबलपुर से भुसावल तक अपना धंधा चला रहे हैं। हैरानी की बात तो ये है कि इतने बड़े स्तर पर हो रहे अवैध कैटरिंग के इस खेल से अभी भी रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी, आरपीएफ व जीआरपी के अधिकारी अंजान हैं। बताया ये भी जाता है कि जब भी रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को दौरा होता है तो अवैध कैटरिंग संचलकों को इसकी सूचना पहले ही मिल जाती है और उस दिन ट्रेनों में खाना सप्लाई नहीं किया जाता ।
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