मानव सभ्यता, पशुओं, औजार के मिले शैलाश्रय
उन्होंने बताया कि अमझीरा सतुपड़ा की पहाडिय़ों की गोद में बसा है। इन पहाड़ों की तलहटी में बने ये शैलाश्रय प्राचीन सभ्यता के सांस्कृतिक भावनाओं का चित्रण करता है। इसमें उस वक्त की मानव सभ्यता, पशुओं, औजार, जीवाश्म आदि के शैल चित्र मिले हैं।
इस टीम ने की थी शैलाश्रय की खोज
डॉ. पगारे ने बताया कि ग्रामीणों से सूचना मिलने पर दस साल पहले कॉलेज की एक शोध टीम अमझीरा गई थी। इस टीम में उनके अलावा एमजीएम के जीव वैज्ञानिक डॉ. वीके कृष्णा और इतिहासवेत्ता डॉ. ओपी शर्मा शामिल थे। हमने शोध करने के बाद 10 पेज के रिसर्च पेपर उच्च शिक्षा विभाग को भेज दिए थे। विभाग ने करीबन 05 साल पहले एक मैगजीन में इस पूरे शोध को प्रकाशित किया था।
10 हजार साल पुराने शैलाश्रय, अध्ययन नहीं हुआ
डॉ. पगारे ने बताया कि ये शैलाश्रय करीबन 10 हजार साल पुराने प्राचीन सभ्यता के प्रतीत होते हैं। यह क्षेत्र मध्य सतपुड़ा घाटी की तलहटी में बसा है। ग्रामीणों ने इस क्षेत्र में सैकड़ों शैलाश्रय होने का दावा किया है। हमने शोध के लिए इन शैलाश्रयों की खोज की है। यहां पुरा मानव सभ्यता के प्रमाण मिले हैं, लेकिन शायद सरकारी उपेक्षा के चलते इस क्षेत्र का सही तरीके से अध्ययन नहीं हुआ है।
शोध में मिले शैलचित्रों की पहचान
– जंगली पशुओं का चित्राकंन, आकेट करते शिकारियों को धनुष- बाण के साथ, कहीं-कहीं भाले लिए शिकारी दिख रहे हैं।
– किसी उत्सव में भाग लेते पुरा मानव समुदाय के अंकन, शैलचित्र में लाल घेरू रंग का प्रयोग अधिक है, कहीं-कहीं सफेद रंग का प्रयोग किया गया है।
– आखेट के दृश्य, नृत्य करते पुरुषों, युद्ध संबंधी चित्रण के अंकन में ज्यामितिय रेखाकृतियों का उपयोग किया गया है।
– हजारों साल पुराने ये शैलचित्र मौसम के प्रभाव से धुंधले पड़ रहे हैं। अभी भी वक्त है, इन शैलचित्रों को बचाया जा सकता है।
– अमझीरा के शैलचित्रों का उल्लेख शासकीय अभिलेखों में नहीं है, लेकिन तीन सदस्यीय टीम ने ग्रामीणों से मिली सूचना के आधार पर यहां पहुंचकर शोध किया था।