SURAT KAPDA MANDI: कहने को कई, मजबूती किसी में नहीं…

भारत देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में सूरत कपड़ा मंडी की अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान है और यह इंडस्ट्री यहां के मेहनतकश हजारों कपड़ा व्यापारियों के बूते औद्योगिक स्तर पर लगातार मजबूती की ओर बढ़ती जा रही है। देश के कोने-कोने से आए हजारों कपड़ा व्यापारी सूरत कपड़ा मंडी को तो लगातार मजबूती दे रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं से वे स्वयं अंदर ही अंदर बेहद कमजोर भी महसूस कर रहे हैं

<p>SURAT KAPDA MANDI: कहने को कई, मजबूती किसी में नहीं&#8230;</p>
सूरत. भारत देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में सूरत कपड़ा मंडी की अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान है और यह इंडस्ट्री यहां के मेहनतकश हजारों कपड़ा व्यापारियों के बूते औद्योगिक स्तर पर लगातार मजबूती की ओर बढ़ती जा रही है। देश के कोने-कोने से आए हजारों कपड़ा व्यापारी सूरत कपड़ा मंडी को तो लगातार मजबूती दे रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं से वे स्वयं अंदर ही अंदर बेहद कमजोर भी महसूस कर रहे हैं। यह कमजोरी है तभी तो एक कपड़ा व्यापारी कपड़ा कारोबार में डेढ़ साल से बकाया लाखों की रकम अन्यत्र कपड़ा मंडी के बकायेदार व्यापारी से हासिल करने के लिए पुलिस शिकायत भी एक मोटी रकम देकर करवाने को विवश है। यह तो व्यापारिक कमजोरी का एक मामला है अन्यथा ऐसे किस्से तो कई है। अब वीवर्स संगठन ने एक और नया फरमान सूरत कपड़ा मंडी के हजारों व्यापारियों पर थोपा है और वह ट्रांसपोर्ट चार्ज के रूप में है जो कि सोमवार से लागू होना तय बताया है। इस नए फरमान से सूरत कपड़ा मंडी में अनावश्यक हड़कंप मचना भी तय था और वह मचा भी है। अब कुछ व्यापारिक संगठन जिनकी स्ट्रेंथ दो-तीन या आठ-दस जनों तक ही सीमित है वे पेपरबाजी शुरू कर देंगे। व्यापार में अव्यावहारिक नियमों का विरोध होना ही चाहिए, लेकिन विरोध करने वाले में दम भी जरूरी है। अब जो व्यापारिक संगठन यह दम दिखाएंगे भी वो तो पहले से ही बेदम होकर वर्षों से पड़े हैं या फिर पहले जैसे सात दिन में ग्रे माल के पैमेंट के नियम झेले वैसे ही इसे भी स्वीकार कर लेंगे। कोरोनाकाल में जब गतवर्ष जून-जुलाई में सूरत कपड़ा मंडी में व्यापारिक गतिविधि ने लम्बे अंतराल के बाद गति पकड़ी तो हजारों व्यापारियों के संगठन का दम भरने वाले एक संगठन ने बेचे गए कपड़े का पैमेंट एक माह में चुका देने व नहीं चुकाने पर ब्याज समेत पैमेंट का नियम बनाया तो सही मगर दूसरे सूरत कपड़ा मंडी की सवा दो सौ से ज्यादा टैक्सटाइल मार्केट के एकमात्र प्रतिनिधित्व संगठन का दम भरने वाले तो यह दावा भी नहीं कर पाए और यह कहकर हाथ ऊंचे कर लिए कि सबकी अपनी-अपनी व्यापार नीति है। शायद सच ही कहा था उन्होंने तभी तो उन्हें अब सूरत कपड़ा मंडी में कोई सीरियस नहीं लेता…। यहीं व्यापारियों का दुर्भाग्य है कि संगठन में बरगद जैसी जड़े जमाकर बैठे इन लोगों को व्यापारी ही सीरियस नहीं लेता और दूसरे घटकों के संगठन इसे भली-भांति समझते हुए अपने नियम-कानून थोपते जा रहे हैं। सच्चाई यह है कि एक समय यह भी था जब इसके नाम की धमक केंद्र सरकार के कपड़ा और वित्त मंत्रालय में जोरों की थी क्योंकि तब इसके साथ सूरत कपड़ा मंडी के हजारों व्यापारियों की ताकत साथ में थी। आज तो इस व्यापारिक संगठन के 31 जने ही एक साथ नहीं है और उन्होंने भी अलग-अलग होकर मानों प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जैसा अपना हाल बना लिया है। यहां इन्हीं में से निकले मात्र सौ-सवा सौ व्यापारियों के छोटे मगर दिलेर व्यापारिक संगठन की बात होना भी जरूरी है जिसने थोड़े ही समय में अपनी संगठन शक्ति के आगे अहमदाबाद, जयपुर जैसी कपड़ा मंडियों को सोचने ही नहीं बल्कि अनुसरण करने को मजबूर कर दिया। आज सूरत मंडप क्लॉथ एसोसिएशन के कड़े नियमों का पालन देश की अन्यत्र मंडियां कर रही है बल्कि वैसा ही दूसरी छोटी मंडियों में व्यापारियों से करवा भी रही है। व्यापार व्यवहार के भरोसे है, लेकिन यह व्यवहार का भरोसा तब कमजोर होता जाता है जब कोई एक संगठन कमजोर पड़ता प्रतीत होता है और कमजोर संगठन की कीमत इस तरह से हजारों व्यापारियों को चुकानी पड़ती है।
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