नहीं बढ़ाई जाएगी बोली की आखिरी डेट
निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग की ओर से पहले ही साफ कर दिया गया था कि अब बोली के लिए आखिरी डेट को आगे की ओर नहीं खिसकाया जाएगा। ऐसे में ब्रिटेन की बीपी और और फ्रांस की टोटल कंपनी के बिड लगाने की संभावना पर विराम सा लग गया है। वहीं दूसरी ओर रूस की प्रमुख ऊर्जा कंपनी रोजनेफ्ट या उसकी सहयोगी और सउदी अरब की तेल कंपनी भी बोली की रकम से डर गई हैं। ऐसे में वो भी इससे दूर ही रहेंगी। उनका कहना हिै कि कोविड काल में तेल की मांग काफी कम हो गई है। ऐसे में 10 अरब अमरीकी डॉलर की बोली कंपनी के लिए काफी ज्यादा है।
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करीब 70 हजार करोड़ रुपए की कंपनी
अगर बात कंपनी की कीमत करें तो बांबे स्टॉक एक्सचेंज पर कंपनी का शेयर प्राइस 412.70 रुपए के बंद भाव पर बीपीसीएल में सरकार की 52.98 फीसदी की हिस्सेदारी के आधार पर 47,430 करोड़ रुपए की है। वहीं खरीदार को जनता से 26 फीसदी खरीदने के लिए खुली पेशकश करनी होगी, जिसकी लागत 23,276 करोड़ रुपए आंकी गई है। यानी कंपनी की कुल कीमत के लिए करीब 70 हजार करोड़ रुपए चुकाने होंगे। वहीं दूसरी इन्हें वसूलने की बात करें तो बीपीसीएल को सालाना 8 हजार करोड़ रुपए का प्रॉफिट भी होता है। गर यही एवरेज प्रॉफिट रहता है तो खरीदार को कीमत वसूलने के लिए करीब 8 से 10 साल लग जाएंगे।
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रिलायंस की क्यों हो रही है चर्चा
इस डील में रिलायंस की चर्चा काफी जोरों से हो रही है। इसका कारण बताते हुए जानकार कहते हैं कि इस तरह का निवेश उन कंपनियों के लिए फायदेमंद होता है जो कंपनी के कारोबार के साथ ही ऑपरेशनल एफिशिएंसी और मौजूदा कारोबार के साथ बैलेंस कर प्रॉफिट को बढ़ा सकती है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में वो सारी काबिलियत दिखाई देती है। रिलायंस गुजरात स्थित जामनगर में दुनिया के सबसे बड़े ऑयल रिफाइनिंग कांप्लेक्स का संचालन करती है और खुदरा कारोबार को भी बढ़ाना चाहती है। वहीं दूसरी ओर आरआईएल भी बीपीसीएल को लेकर पूरी तरह से चुप है। इस मामले में कोई कमेंट नहीं किया है।