कारोबारियों के हड़ताल के बाद वित्त मंत्री ने दिया था आरवासन
जब से भारत सरकार ने 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू किया तब से सूरत के वस्त्र व्यापारी कह रहे हैं कि जीएसटी ने उनके लिए मौत की घंटी बजा दी है। सूरत के व्यापारी 1 जुलाई 2017 को हड़ताल पर चले गए थे, लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के आश्वासन पर 18 दिनों के बाद उन्होंने ये ख़त्म कर दी। पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र-सूरत में देश भर में कपड़ा केंद्रों में जीएसटी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। 1980 के दशक में शहर ने कपास से सिंथेटिक कपड़े में एक संक्रमण देखा। 2017 वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सूरत भारत में बने सभी मानव निर्मित कपड़े का 40% उत्पादन करती है। इन व्यापारियों का व्यवसाय कौशल पौराणिक है और दोनों समुदायों ने देश को अंबानी और बिड़ला जैसे व्यापारी दिए।
पावरलूम पर पड़ा सबसे अधिक असर
रिपोर्ट की माने तो जीएसटी का सबसे ज्यादा असर सिंथेटिक धागा उद्योग पर पड़ा है। जिसके अलग-अलग चरणों में जीएसटी की अलग अलग दरें लगती हैं। पारवलूम सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं क्योंकि जीएसटी व्यवस्था के तहत उन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड हासिल करने पर रोक लगा दी गई है। कपड़ा कारोबार पर 5 फीसदी जीएसटी लगता है जबकि सूरत के 75,000 कपड़ा कारोबारियों में 90 फीसदी लघु एवं मझोले कारोबारी हैं।
40 फीसदी घटा जीएसटी से कारोबार
इन कारोबारियों का कारोबार जीएसटी के बाद 40 फीसदी तक घट गया। सूरत के कपड़ा उद्योग साइजिंग, ट्विस्टिंग, प्रसंस्करण और बुनाई में जीएसटी से पहले 80 से 90 फीसदी रोजगार था जो अब घटकर 40 से 50 रह गया है। हालांकि अभी भी सूरत में 6,50,000 पावरलूम हैं, जिनमें से 1,00,000 पहले ही कबाड़ के रूप में बिक चुकी हैं। आंकड़ों की माने तो साल 2017 में सूरत में रोजाना 4 करोड़ मीटर सिंथेटिक कपड़े का उत्पादन हो रहा था, जो अब घटकर 2.5 लाख मीटर प्रतिदिन हो गया है। जीएसटी से पहले उद्योग में 17 से 18 लाख कामगार थे जो अब महज 4 से 4.5 लाख रह गई है।