बड़े पैमाने पर होने लगा था निर्यात
हालिया रिसर्च के आधार पर सरकार ने भी माना है कि, कोरोना से लड़ने में अब तक सबसे असरदार दिख रही दवा हाइड्रॉक्सीक्लोराक्वीन को अमेरिका ही नहीं बल्कि और भी कई देश निर्यात करने लगे थे। इसकी वजह से स्थानीय बाजारों में इसकी भारी कमी हो गई थी। इसी को देखते हुए सरकार ने बुधवार को तत्काल प्रभाव से इस दवा के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने भी कोरोना के इलाज स्वरूप क्लोराक्वीन के इस्तेमाल की इजाजत दी है। 150 से अधिक देशों में कोरोना के फैलने की वजह से इस दवा की इन दिनों मांग बहुत तेजी से बढ़ गई है। देश में इस दवा की कमी की आशंका को देखते हुए विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की तरफ से दवा और इसके फॉर्मुलेशान के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया गया है।
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इस इस आधार पर निर्यात की इजाजत
प्रतिबंध लगाते हुए सरकार का कहना है कि, अगर विदेश मंत्रालय किसी शिपमेंट की सिफारिश करे, तो उसके निर्यात को इजाजत दी जा सकती है। हालांकि, अभी सिर्फ उस मेडिसिन के निर्यात की परमीशन है, जिस मेडिसिन के शिपमेंट की भुगतान राशि विक्रेताओं ने एडवांस में ली है।
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कीमतों में आया भारी उछाल
बता दें कि, अमेरिका में कोरोना से लड़ने में हाइड्रॉक्सीक्लोराक्वीन के इस्तेमाल की अनुशंसा के बाद भारत के बाजार में इस दवा के कच्चे माल की कीमतों में 300 फीसद बढ़ोतरी हो गई थी। दवा निर्माताओं के मुताबिक 20 दिन पहले तक हाइड्रॉक्सीक्लोराक्वीन के कच्चे माल की कीमत 6,000- 7,000 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो बढ़कर 18,000 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर पर जा पहुंची है। कोरोना से लड़ने में इस्तेमाल होने वाले मास्क, सैनिटाइजर, वेंटिलेटर जैसे जरूरी सामान के निर्यात पर सरकार पहले ही प्रतिबंध लगा चुकी है। कुछ दिन पहले तक मास्क व सैनिटाइजर की कीमत में भी घरेलू बाजार में भारी बढ़ोतरी देखी गई। फिलहाल, सरकार ने इन चीजों पर तो रोक लगाई ही है, साथ ही इसकी कालाबाजारी करने वालों पर भी कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैं।