Army Day Special: सेना की महू छावनी में मिली पक्षियों की 14 दुर्लभ प्रजातियां

– महू छावनी के आसपास मिली पक्षियों की 14 दुर्लभ प्रजातियां
– सेना के एक अधिकारी ने पहचान कर रिकॉर्ड किया
– प्रवास के दौरान आते हैं कई विदेशी पक्षी

<p>Army Day Special: सेना की महू छावनी में मिली पक्षियों की 14 दुर्लभ प्रजातियां</p>

मनीष यादव

इंदौर. हाथों में बंदूक थामे भारतीय सेना (indian Army) के अधिकारियों और जवानों को जंग के मैदान में लड़ते हुए कई लोगों ने देखा होगा। उन्हें गाते हुए, नाचते हुए और अपने कारनामों से सबको अचंभित करते हुए भी कई बार देखा गया है। इसी भारतीय सेना का एक और रूप देखने को मिला है वह है प्रकृति प्रेमी का। हमारी सेना जितना हर भारतीय के दिल के करीब है उतना ही प्रकृति के भी करीब है। सेना की प्रकृति के करीबी दर्शाता एक मामला महू का है। यहां पर सेना के एक अधिकारी (army officer) ने महू छावनी और उसके आसपास पक्षियों की 14 नई प्रजातियों को पहचान की और रिकॉर्ड किया है। अभी तक क्षेत्र में अछूती रही है। पक्षी प्रेमी और पक्षी वैज्ञानिक (Ornithologist) भी अभी तक इन्हें इन्दौर के आसपास नहीं देख पाए थे।

इन पक्षी प्रेमी अधिकारी का नाम है ब्रिगेडियर अरविंद यादव। इन्हें प्रकृति से प्रेम और पशु पक्षियों के बारे में ज्ञान अपने पिता से विरासत में मिला है। देश के अलग-अलग हिस्सों में पोस्टिंग के दौरान उन्होंने वहां की जैव विविधता और पक्षियों को लेकर भी अध्ययन किया है। महू आने पर भी यह सिलसिला जारी रहा। ब्रिगेडियर यादव के मुताबिक इंदौर में 265 के करीबन पक्षियों की प्रजाति रिकॉर्ड की जा चुकी है। इनमें स्थानीय से लेकर प्रवासी पक्षी भी शामिल है। कुछ जहां विदेश से प्रवास के दौरान यहां पर आते हैं, तो कुछ देश के दूसरे हिस्सों से मौसम के हिसाब से अपने बसेरा बदलते रहते हैं। महू में 14 नई प्रजातियों को उन्होंने खोजा है। जो कि अभी तक रिकार्ड पर नहीं थी। इनमें से एक राज्य के लिए तो बाकी जिले के लिए नई है। इस तरह से 280 के लगभग प्रजातियों को रिकार्ड किया जा चुका है।

यह है नई प्रजातियां
1. छोटी चरचरी/चिल्लू- रूस से आती है। सर्दियां में वहं से प्रवास करती है। यहां पर घास के मैदान में रहती है

2. चूहा मार- यह शिकारी पक्षी है, जो कि सायबेरिया से आता है। वहां से ठंड के मौसम में आता है और तीन-चार महिने रहकर वापस चला जाता है। चूहों का शिकार करने के कारण इसका चूहा मार नाम पड़ा है।

3. लाल बगुला- लाल, काला और पीला बगुला यह तीनों पक्षी एक ही परिवार से हैं। मौनसून में स्थानीय प्रवास करते हैं। झीलों और तालाबों के किनारे उंचे सरकंडों में मछलियों का शिकार करते हैं।

4. लाल जलबटेर- जलमुर्गी की नस्ल का एक अत्यन्त शर्मीला पक्षी है जो तालाबों के किनारे सरकंडों में पाया जाता है।

5. भूरी जल बटेर- यह भी लाल जल बटेर की तरह ही जलमुर्गी की नस्ल का पक्षी है जो तालाबों के किनारे पाया जाता है।

6. नील चिड़ी/नीला पिद्दा- ये छोटा खूबसूरत स्थानीय प्रवासी पक्षी केरल और श्रीलंका में सर्दियां बिताते हैं और मई महीने में हिमालय के पहाड़ों में प्रजनन के लिये पहुंचते हैं। दक्षिण की ओर प्रवास अगस्त में शुरू होता है। मध्य भारत में प्रवास के दौरान अस्थाई रुप से कुछ दिन बिताते हैं।

7. छोटा गुल्लू, छोटा लव्वा- बटेर जैसा एक छोटा स्थानीय शर्मीला पक्षी जो घास के मैदानों में पाया जाता है

8. पीला पिद्दा, रक्त रंगोजा- छोटा पक्षी जो रुस और मध्य एशिया के मैदानों से शरद ऋतु में उत्तर और मध्य भारत में प्रवास करता है।

9. सींखदुम चहा- चहा परिवार का एक सदस्य जो झीलों और तालाबों के किनारे घास में पाया जाता है। यह पक्षी सुदूर साइबेरिया से प्रवास करने भारतीय उपमहाद्वीप आता है।

10. पीला बगुला- पीला बगुला परिवार का सदस्य, उसके जैसी ही समानता।

11. बेसरा- दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के घने जंगलों में पाया जाने वाला छोटा परंतु तेज तर्रार शिकारी पक्षी है।

12. भूरी, पत्थर धनचिडि़- घास के खुले मैदानों में पाई जाने वाली भारीट नस्ल की सुन्दर चिडिय़ा है। मौसम के अनुसार छोटी दूरी का प्रवास करती है।

13. काला बगुला- पीला बगुला परिवार का सदस्य, उसके जैसी ही समानता।

14. कश्मीर शलभाष- यह भी प्रवासी पक्षी है। कश्मीर में प्रजनन करता है और उसके बाद श्रीलंका तक की अपनी यात्रा करता है। इस यात्रा के दौरान वह यहां पर रुकता है।

महू में पक्षियों के लिए सब कुछ

ब्रिगेडियर यादव ने बताया कि महू छावनी (mhow cant) के आसपास का इलाका ऐसा है, जहां पर हर तरह के पक्षियों के लिए कुछ न कुछ है। यहां पर तालाब, पहाड़, घास के मैदान, घने जंगल,नदियां, झरने खेत सब है। इसके साथ ही पर यहां पर फल फूल की विविधता भी है। पानी पर आश्रित पक्षियों के लिए नदी, तालाब तो, खुले मैदान पसन्द करने वालों के लिए घास के मैदान। इसके साथ ही सैनिक छावनी होने के कारण यह इलाका सुरक्षित भी है। यहां पर शिकारी और बाहरी दखलअंदाजी भी नहीं है। यही कारण है कि इस छोटी सी जगह में भी इतनी प्रजातियों को पक्षी मिले है।

अब तितलियों की खोज

इस क्षेत्र में पेड़-पौधों, कीट पतंगों, तितलियों, उभयचरों, स्तनधारियों और सरीसृपों की प्रजातियां भी प्रचुर संख्या में पाई जाती हैं। ब्रिगेडियर यादव और उनके साथी देव कुमार वासुदेवन की जोड़ी इन प्रजातियों के वैज्ञानिक अंकन पर भी काम कर रही है। वह क्षेत्र में तितलियों के बारे में जानकारी इकट्टा कर रहे है।

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