डेढ़ साल बाद बच्चों का रुख स्कूल की ओर
डेढ़ साल बाद बच्चों का रुख स्कूल की ओर
<p>डेढ़ साल बाद बच्चों का रुख स्कूल की ओर</p>
डेढ़ साल बाद बच्चों का रुख स्कूल की ओर
-स्कूलों में मिड-डे-मील की व्यवस्था
शिवमोगा
शिवमोगा तालुक के गेज्जेनहल्ली ग्राम में स्थित सरकारी उच्च प्राथमिक शाला में विद्यार्थियों का भव्य स्वागत किया गया। कोविड महामारी के चलते लॉकडाउन करने से पिछले डेढ़ वर्ष से सरकारी एवं अनुदानित स्कूलों में स्थगित हुए मिड-डे-मील की व्यवस्था गुरुवार से फिर से शुरू किया गया है। इससे शाला गतिविधियां और तेज होगई हैं।
गेज्जेनहल्ली स्कूल के शिक्षकों ने विद्यार्थियों के लिए विशेष भोजन की व्यवस्था की थी। खाना बनाने के कमरे को सजाया गया था। दूध छिड़क कर कमरे की पूजा की गई। रसोई तैयार करने वाले कर्मचारियों को आवश्यक मदद उपलब्ध की गई। स्वयं मुख्य अध्यापक ने स्कूल परिसर में कचरा साफ किया। एसडीएमसी प्रशासनिक मंडल के कुछ सदस्यों ने भी स्कूल स्वच्छता कार्य में सहयोग दिया।
उसी गांव के निवासी तथा पूर्व तालुक पंचायत सदस्य कृष्णमूर्ति ने स्कूल शुरू होने की खुशी में एक सप्ताह तक नि:शुल्क 5 लीटर दूध प्रति दिन देने की घोषणा की। 5 से 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए कुछ सप्ताह पहले ही स्कूल शुरू हो गई थी परंतु मध्याह्न भोजन की व्यवस्था नहीं की गई थी। दशहरे की छुट्टियां बिताने के पश्चात मध्याह्न भोजन शुरू किया गया है।
करीब डेढ़ साल के बाद में मिड-डे-मील की व्यवस्था करने के पश्चात किसी प्रकार की समस्या नहीं होने की दिशा में सचेत होने के लिए शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को निर्देश दिए थे। इसके चलते पिछले कुछ दिनों से मिड-डे-मील पूर्व तैयारी में जुटे हुए थे। दूसरी ओर 1 से 5 वीं कक्षा के बच्चों को 25 अक्टूबर से स्कूल शुरू हो रहे हैं। इस दिशा में भी आवश्यक तैयारियां करते हुए कोविड दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए शिक्षकों को कड़े निर्देश दिए गए हैं।
दशहरे के बाद में शुरू हुए स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति कम दिखाई दी। बच्चों की हाजिरी बढ़ाने की दिशा में शिक्षा विभाग की ओर से ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। स्कूल से दूर रहने वाले बच्चों को फिर से स्कूल की ओर लाने का कार्य शुरू करना है।
कृष्णमूर्ति ने कहा कि विद्यार्थियों को स्कूल की ओर आकर्षित करने के लिए एक सप्ताह तक 5 लीटर प्रतिदिन दूध वितरित किया जाएगा। मध्याह्न भोजन की व्यवस्था करने से बच्चों को काफी मदद मिलेगी। इस दिशा में ग्रामीण इलाकों में बच्चों को स्कूलों को नियमित रूप में आने की आवश्यकता है।