ये फांसी का पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली की तिहाड़ जेल में ही आज से 38 साल पहले भी दो बलात्कारियों को फांसी दी गई थी। लेकिन ये फांसी थोड़ी अलग थी। फांसी देने के 2 घंटे बाद तक अपराधी की मौत नहीं हुई थी। वह जिंदा था। जिसके बाद प्रशासन ने एक गार्ड को कुंए में उतारा। गार्ड ने नीचे उतर कर उसके पैर खींचे तब जाकर उसकी मौत हुई। इस ख़ूँख़ार अपराधी का नाम था रंगा।
रंगा और बिल्ला को बलात्कार और हत्या के मामले में फांसी हुई थी
रंगा (ranga billa case) की कहानी साल 1978 में शुरू होती है जब दिल्ली में एक भाई-बहन का अपहरण होता है। फिर दोनों भाई-बहन को मौत के घाट उतार दिया जाता है। मारने से पहले भाई के सामने ही बहन का रेप किया जाता है। उसे बुरी तरह से सताया जाता है। इन अपराधों में दो नाम सामने आते हैं। रंगा और बिल्ला। ये उस समय के कुख्यात अपराधी थे। रंगा-बिल्ला ने बहन भाई को लिफ्ट देने के बहाने अगवा किया था। उनका इरादा उनके घर वालों से पैसे लेना था। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला की दोनों एक नौसेना अधिकारी के बच्चे हैं तो वे डर गए। इसके बाद दोनों दरिंदों ने उन्हें ढेरों यातनाएँ दी। इसके बाद भाई के सामने ही बहन का रेप किया फिर दोनों का मार दिया। इस घटना ने सरकार को पूरी तरह से हिला कर रख दिया। उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी परेशान हो गए थे।
फांसी के 2 घंटे बाद भी चल रही थी रंगा की नब्ज
कुछ ही दिनों में दोनों पकड़ लिए गए। उन्हें मौत की सजा दी गई। 31 जनवरी 1982 को फांसी के दिन उनके चेहरों को ढ़क दिया गया और उनके गलों में फंदा डाल दिया गया। रंगा और बिल्ला को फांसी देने के लिए प्रशासन ने दो जल्लादों फकीरा और कालू को बुलाया था। फकीरा ने बिल्ला का लीवर खींचा और कालू ने रंगा का। लीवर खींचे जाने के करीब दो घंटे बाद उनके शवों की जांच हुई तो पता चला रंगा की नब्ज चल रही थी। जिसके बाद कालू ने कुंए में उतर कर उसके पैरों को खींचा तब जाकर रंगा की कहानी खत्म हुई। बता दें ये सारी बातें तिहाड़ जेल के पूर्व कानून अधिकारी सुनील गुप्ता और पत्रकार सुनेत्रा चौधरी द्वारा लिखी गई किताब ‘‘ब्लैक वारंट” के आधार पर बताई गई है।