एक लड़की की वजह से 42 साल बंद रहा ये रेलवे स्टेशन, पीछे छुपा है ये बड़ा राज
जेल में वो सारी तैयारियां फांसी होने वाले दिन से पहले ही पूरी कर ली जाती हैं, जिनमें फांसी का तख्ता, रस्सी, नकाब, फांसी का तख्ता ठीक से लगा हुआ है, लीवर काम कर रहा है/उसकी सफाई करवाना आदि काम शामिल हैं। फांसी की पूरी तैयारी की जिम्मेदारी सुपरिटेंडेंट की होती है। वो ये सुनिश्चित करता है कि फांसी ठीक तरह से हो गई है और सब कुछ उसकी देखरेख में हुआ है। फांसी के एक दिन पहले शाम को, फांसी के तख्ते और रस्सियों की फिर से जांच की जाती है। रस्सी पर रेत के बोरे को लटकाकर देखा जाता है, जिसका वजन कैदी के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा होता है। जल्लाद फांसी वाले दिन से दो दिन पहले ही जेल आ जाता है और वहीं रहता है।
जल्लाद ( Executioner ) दो दिन पहले इसलिए जेल में आ जाता है ताकि वो अच्छे तरीके से फांसी देने की तैयारी और रिहर्सल कर सके। वहीं फांसी वाले दिन अगर मजरिम चाहे तो उसकी फांसी के वक्त पंडित, मौलवी या पादरी मौजूद हो तो जेल सुप्रिटेंडेंट इसका इंतजाम कर सकते हैं। फांसी सुबह होती है। मार्च, अप्रैल, सितंबर से अक्टूब तक सुबह 7 बजे, मई से अगस्त सुबह 6 बजे और नवंबर से फरवरी में सुबह 8 बजे फांसी का समय तय होता है। सुपरिटेंडेंट और डेप्युटी सुपरिटेंडेंट फांसी से पहले कैदी की पहचान करते हैं और उसकी मातृभाषा में वॉरंट पढ़कर सुनाते हैं। वहीं इन की उपस्थिति में ही फांसी दी जाती है और फिर गर्दन जकड़ने से धीरे-धीरे कैदी की मौत हो जाती है। इसके बाद डेड बॉडी आंधे घंटे तक फांसी के फंदे पर लटकती है और डॉक्टर उसे मृत घोषित करते हैं। पोस्टमार्टम होता हैऔर वॉरंट को वापस कोर्ट में लौटा दिया जाता है कि फांसी सही से हो गई है।