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दरअसल,मथुरा (Mathura) के पास स्थित गांव फालैन के लोगों का मानना है कि ये प्रहलाद का गांव है। जिसके चलते यहां के लोग बड़े धूम धाम से होली का त्योहार मनाते हैं। यहां आज भी एक पुजारी होलिका दहन पर जलती हुई होली के बीच से निकलता है, लेकिन आग उसे जलाती नहीं है। इस गांव में ये परंपरा कई सदियों से चलती आ रही है। इतना ही नहीं होलिका दहन के दिन गांव में मेला भी लगता है। जिसे देखने के लिए पूरी दुनिया से लोग आते हैं। बता दें जो पंडा आग में कूदता है वो एक महीने पहले से ही इसकी तैयारी करने लगता है। एक महिने पहले ही वे अपना घर छोड़ मंदिर में रहने लगता है और रोजाना भगवान विष्णु का पूजा पाठ करता है। वहीं होलिका दहन वाले दिन वे पूरे दिन उपवास रखता है और होलिका दहन के वक्त जलती हुई होलिका के बीच से निकलता है। इसके बाद गांव के लोग उस स्थान की पूजा करते हैं।
जलती होली में से निकलने वाला पुजारी पूरा एक महीना फलाहार करता है और करीब 3 दिन तक सोता भी नहीं है। होली से एक दिन पहले गांव के लोग कंडों की मदद से विशाल होलिका तैयार करते हैं और होलिका पूजन करने बाद उसमें आग लगा देते हैं।
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इसी गांव के रहने वाले रामू बताते हैं कि ये गांव हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद का गांव है। बहुत साले पहले एक संत ने यहां तपस्या की थी।जिसके बाद उन्हें स्वप्न आया कि एक पेड़ के नीचे मूर्ति दबी हुई है। इसके बाद उस जगह की खुदाई की गई। इस खुदाई में भगवान नरसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति निकली। इसके बाद संत ने गांव वालों से कहा जो भी होली पर इस परिवार का जो भी सदस्य पूरी ईमानदारी और आस्था से भक्ति करेगा, उसे भक्त प्रहलाद की विशेष कृपा मिलेगी और वह जलती हुई होली से निकल सकेगा।