यहां जानिए क्या होता है ‘जेल मैनुअल’, इसके हिसाब से क्यों दी जाएगी निर्भया के दोषियों को फांसी
दरअसल, फांसी ( Hanging ) से पहले चारों दोषियों के परिवार के लोग, रिश्तेदार और दोस्तों को जेल सुपरिटेंडेंट की इजाजत से मिलने की इजाजत दी जाएगी। वहीं फांसी देते समय सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर इन्चार्ज और रेज़ीडेंट मेडिकल ऑफिसर का उपस्थित रहना अनिवार्य है। वैसे तो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट का भी रहना जरूरी है, लेकिन किसी अपरिहार्य स्थिति में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की उपस्थिति संभव नहीं हो तो एडीशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उपस्थित होकर वारंट पर काउंटर साइन करता है। फांसी की सजा देते समय कैदी के रिश्तेदारों को वहां उपस्थित रहने की इजाज़त नहीं दी जाती। हालांकि, सरकार से ली गई पूर्व अनुमति के बाद सुपरिटेंडेंट समाज विज्ञानियों, मनोचिकित्सक या मनोविज्ञानियों को उनके शोध के मुताबिक फांसी के वक्त उपस्थित रहने की इजाज़त दे सकता है। फांसी की सजा के वक्त उपस्थित रहने की अनुमति देने से जुड़े मामलों में सुपरिटेंडेंट का फैसला ही अंतिम होता है।
वहीं इसके बाद कैदियों को फांसी के फंदे तक ले जाया जाता है। इस दौरान उनका मुंह काले कपड़े से ढका होता है। जल्लाद कैदी की टांगों को हल्के से साथ में बांध देता है और गले में रस्स की गांठ को सतर्कता से कसा जाता है। कैदियों के हाथ पहले ही पीठ की तरफ बांध दिए जाते हैं। वहीं जैसे ही सुपरिटेंडेंट इसारा देते हैं जल्लाद बोल्ट हटा लेता है और सब प्रक्रिया पूरी होने के बाद सुपरिटेंडेंट का संकेत मिलते ही जल्लाद लिवर खींच देता है। कैदी का शरीर लगभग आधे घंटे तक लटका रहा है और फिर मेडिकल टीम ये प्रमाणित करती है कि कैदी की मौत हो चुकी है। तब इसके बाद धर्म के हिसाब से अंतिम संस्कार किया जाता है। लेकिन अगर कैदी के परिवार ने अंतिम संस्कार के लिए लिखित आवेदन दिया होता है, तो कैदी का शव उनको दे दिया जाता है।