जानें क्यों ‘जेल नंबर-3’ में ही दी जाएगी निर्भया के दोषियों को फांसी, वजह चौंकाने वाली
इसलिए सुबह होती है फांसी
दरअसल, फांसी की सजा जब फाइनल हो जाती है तो डेथ वॉरंट ( death warrant ) का इंतजार होता है, जो कि दया याचिका खारिज होने के बाद कभी भी आ सकता है। डेथ वॉरंट में फांसी का समय और तारीख दोनों स्पषट रूप से लिखी होती है। वहीं फांसी देने की आगे की प्रक्रिया जेल मैनुअल के हिसाब से होती है, जो कि हर राज्य का अपना अलग जेल मैनुअल होता है। वहीं फांसी का समय महीनों के हिसाब से अलग-अलग होता है। यानि सुबह 6, 7 या फिर 8 बजे लेकिन ये समय हमेशा ही सुबह का ही होता है। दरअसल, इसके पीछे कारण ये बताया जाता है कि सुबह बाकी कैदी सो रहे होते हैं और जिस कैदी को फांसी दी जानी है उसे पूरे दिन मौत का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। साथ ही परिवार वालों को अंतिम संस्कार का भी दिन में मौका मिल जाता है।
कान में जल्लाद कहता है ये बात
फांसी देने से पहले कैदी को नहलाया जाता है और नए कपड़े भी पहनाए जाते हैं। फांसी देने से पहले दोषी की आखिरी इच्छा भी पूरी की जाती है, जिसमें परिवार से मिलना, अच्छा खाना समेत अन्य इच्छाएं शामिल होती हैं। वहीं सबसे असली काम जल्लाद का ही होता है क्योंकि जल्लाद ही दोषी के साथ आखिरी समय में होता है और वो ही उसे फांसी देता है। लेकिन फांसी देने से पहले जल्लाद दोषी के कान में कहता है कि ‘हिंदुओं को राम-राम और मुस्लिमों को सलाम। मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं। मैं आपके सत्य की राह पे चलने की कामना करता हूं।’