इस राखी को सौराष्ट्र (पालीताणा) के कलाकारों के साथ-साथ पालरेचा परिवार ने बनाया यहै। इसकी खास बात यह है कि राखी को बनाने में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की भूमिका है। अष्ट धातु की राखी में हीरे, सोना, चांदी, तांबा, पीतल, जस्ता के साथ-साथ कई तरह के नगीने भी लगाए गए हैं। जबकि भगवान सूर्य की किरणों को बनाने के लिए इसमें ज़री का इस्तेमाल किया गया है। राखी को तैयार करने में 2 महीने का समय लगा है। इसे 10 से 12 लोगों ने मिलकर बनाया है।
खजराना गणेश मंदिर के साथ-साथ पंचकुइया स्थित वीर बगीची, उज्जैन में महाकाल, मुंबई में सिद्धी विनायक, बड़ा गणपति मंदिर सहित शहर के मंदिरों में राखी बांधने की परंपरा 18 साल से चली आ रही है। राखी के जरिए एक संदेश भी दिया गया कि जिस तरह अंधेरा होने पर अगले दिन उजाला होता है, ठीक उसी तहर यह बीमारी भी खत्म होगी और एक बार फिर आर्थिक रूप से मजबूती आएगी। पुण्डरीक पालरेचा परिवार का कहना है कि इस राखी को उन्होंने बहुत निष्ठा और प्रेम भाव से तैयार किया है। इस राखी को बनाने के लिए प्रत्येक दिन, परिवार का हर सदस्य लगभग तीन घंटे से ज्यादा समय तक काम करता था।