‘अंध कन्या प्रकाश गृह’ नाम से बने इस स्कूल में कभी ऐसा भी था कि जब केवल यहां बच्चें हुआ करते थे। लेकिन आज यह स्कूल एक बड़ा रूप ले चुका है। यह स्कूल दुनिया के सामने एक मिसाल बना हुआ है। आपको बता दें कि इस स्कूल को खोलने का मकसद ही यही था कि इस स्कूल में उन लड़कियों को शिक्षित किया जाए जो शारीरिक रूप से कमजोर होने के साथ दिव्यांग हैं। उन्हें शिक्षित करके आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
इस स्कूल को ‘नीलकांत राय छत्रपति’ ने साल 1954 में में मात्र 10 हजार रुपये की राशि के साथ खोला था। आज के समय स स्कूल का जिम्मा एक निजी संस्थान उठा रही है।
इस स्कूल में शारीरिक रूप से दिव्यांग लड़कियों को उच्च क्वालिटी की एजुकेशन देने के साथ दूसरे कलाकौशल से भी परिचित कराया जाता है। उन्हें हर वो चीज सिखाई जाती है जो उनकी जिंदगी में काम आ सके। वो बाद में किसी के उर निर्भर ना रह सकें। इसके बाद जब दिव्यांग लड़कियां शादी के योग्य हो जाती हैं तो संस्थान की ओर से उनके योग्य वर ढूंढकर उनकी शादी भी कराई जाती है। यही बात इस स्कूल को बाकी सभी स्कूलों से अलग बनाती है।
इस स्कूल की लड़कियां आर्ट कलाओं के साथ चिक्की, दिवाली के दिए और कई हथकरघा जैसे प्रोडक्ट बनाती हैं, जिन्हें मार्केट में लोग काफी पसंद करते है। यहां की छात्राओं की धाराप्रवाह अंग्रेजी सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। ये दिव्यांग छात्राएं पढ़ाई और अन्य गतिविधियों के मामले में किसी भी सामान्य छात्र से बिल्कुल भी कम नहीं हैं।