SYL: हरियाणा-पंजाब के बीच 54 साल से विवाद, 32 लोगों की हो चुकी है हत्या

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मुद्दे पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के बीच 18 अगस्त को चर्चा होने जा रही है।

<p>सतलुज यमुना लिंक नहर का निर्माण बंद है।</p>
चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा के बीच पानी के बँटवारे को लेकर 54 साल से विवाद चल रहा है। इसमें 32 लोगों की हत्या हो चुकी है। इसके बाद भी समस्या का कोई समाधान नहीं हो पा रहा है। इस विवाद का नाम है एसवाईएल यानी सतलुज यमुना लिंक नहर का पानी। दोनों राज्य अधिक पानी मांग रहे हैं। केन्द्र सरकार ने 1966 में हरियाणा को 50 फीसदी पानी दे दिया, जो राज्य सरकार को मंजूर नहीं है। एसवाईएल का निर्माण कार्य बंद है। इस मुद्दे पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के बीच 18 अगस्त को चर्चा होने जा रही है। बैठक में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मौजूद रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुख्यमंत्री मिल रहे हैं। आशा जताई जा रही है कि विवाद का हल निकल आएगा।
1966 से विवाद

पंजाब और हरियाणा में एसवाईएल विवाद, यानी पानी के बंटवारे का झगड़ा उसी समय शुरू हो गया था जब पंजाब से अलग हरियाणा राज्य का गठन हुआ। 1966 में हरियाणा के विभाजन के बाद भारत सरकार ने पुनर्गठन एक्ट, 1966 की धारा 78 का प्रयोग किया। पंजाब के पानी (पेप्सू सहित) में से 50 प्रतिशत हिस्सा (3.5 एमएएफ) हरियाणा को दे दिया गया जो 1955 में पंजाब को मिला था। 1988 में आतंकवाद के दौर में एसवाईएल नहर के निर्माण में लगे इंजीनियरों समेत 30 मजदूरों की हत्या कर दी गई। इसके बाद साल 1990 में 3 जुलाई एसवाईएल के निर्माण से जुड़े दो इंजीनियरों की भी हत्या कर दी गई। आखिरकार नहर निर्माण का काम बंद हो गया।
सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई

1996 में हरियाणा फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने 2002 को पंजाब को निर्देश दिए कि या तो एक वर्ष में एसवाईएल नहर बनवाए या फिर इसका कार्य केंद्र के हवाले करे। 2015 को हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने का अनुरोध किया। इस पर 2016 को इस मामले में गठित 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने पहली सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बुलाया। 8 मार्च को दूसरी सुनवाई हुई। इसी बीच पंजाब में 121 किमी लंबी नहर को पाटने का काम शुरू हो गया। 19 मार्च तक सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति के आदेश देते हुए नहर पाटने का काम रुकवा दिया।
चार माह का समय

अगस्त, 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोनों राज्यों को अपने अधिकारियों की कमेटी बनाकर मामला सुलझाने के निर्देश दिया। साथ ही साफ कर दिया गया कि अगर दोनों राज्य आपसी सहमति से नहर का निर्माण नहीं करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख पर 3 सितंबर को दोनों राज्यों की ओर से जवाब दिया जाना था, लेकिन दोनों राज्यों की दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब चार महीने का समय दे दिया है, जिसमें नहर के निर्माण पर अंतिम फैसला लेना जरूरी हो गया है।
हरियाणा का पक्ष मजबूत

जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हरियाणा को कोई समस्या नहीं है। हरियाणा को तो पानी मिल चुका है। नहर के निर्माण को लेकर फैसला होना है। अगर बैठक में सहमति बन जाती है तो बहुत अच्छा रहेगा।
कब क्या हुआ

24 मार्च 1976

केंद्र की तरफ से हरियाणा को 3.5 एमएएफ पानी देने की अधिसूचना हुई

8 अप्रैल 1982

इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव के पास नहर खुदाई का उद्घाटन किया
24 जुलाई 1985

राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ। पंजाब ने नहर बनाने की सहमति दी

1996

समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की

15 जनवरी 2002
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक वर्ष में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया

4 जून 2004

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई

2004

पंजाब ने पंजाब टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर तमाम जल समझौते रद कर दिए
20 अक्टूबर 2015

मनोहर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।

26 नवंबर 2016

सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया
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