मरीज को गंभीर स्थिति कौन सी सर्जरी करानी चाहिए!

मरीज को गंभीर स्थिति में कौन सी सर्जरी करानी चाहिए। किस लेप्रोस्कोपिक सर्जरी यानी डे-केयर सर्जरी। रोगी ऑपरेशन के 24 घंटे के भीतर चलने फिरने की स्थिति में आ जाता है और अपना काम भी कर सकते हैं। ये सर्जरी ओपेन सर्जरी की तुलना में बहुुत सरल है और मरीज को लंबे समय तक बैड रेस्ट नहीं करना पड़ता है।

लेप्रोस्कोपिक सर्जरी गॉल ब्लैडर (पित्त की थैली), पेल्विस, अपर और लोवर जीआई ट्रैक्ट, थोरेक्स सर्जरी, अपेंडिक्स, हर्निया के साथ बड़ी और छोटी आंत का सफल ऑपरेशन संभव है।

पाइल्स और फेफड़ों में एमआइएस
पाइल्स और फेफड़ों में किसी तरह की समस्या होने पर पहले ओपेन सर्जरी की जाती थी। अब पाइल्स में स्टेपल टेक्नीक का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें पाइल्स (बवासीर) को स्टेपलर सर्जरी इक्वीपमेंट से ऑपरेट कर निकाल दिया जाता है। इसी तरह सीने, फेफड़े और हृदय संबंधी समस्या में मिनिमल इनवेसिव सर्जरी (एमआइएस) का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें बहु छोटे छेद की मदद से बीमारी को अलग कर दिया जाता है। इसे मेडिकली वीडियो असिस्टेड थोरेसिक सर्जरी भी कहते हैं।

क्रिटिकल स्थिति में ज्यादा कारगर
स्त्री रोगों में भी लेप्रोस्कोपी सर्जरी का बेहतर इस्तेमाल हो रहा है। गर्भावस्था से बचने के लिए आइयूसीडी लगाने का काम भी लेप्रोस्कोप से हो रहा है। इसमें सिंगल पंचर की मदद से इस प्रोसीजर को किया जाता है। इसी तरह ओवेरियन सिस्ट को भी पंचर कर निकाला जाता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी गर्भधारण के बाद बच्चा बच्चेदानी की बजाए ट्यूब में लग जाता है। तीन महीने के गर्भावस्था में ये समस्या पता चलती है। ऐसे में मां की जान बचाने के लिए सोनोग्राफी के बाद लेप्रोस्कोप से भू्रण को एबॉर्ट करा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में पहले लेप्रोटॉमी की जाती थी जिसमें बड़ा चीरा लगाकर भू्रण को हटाया जाता था।

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