लाइलाज नहीं है बौनापन

जब लंबाई 147 सेमी. से कम हो तो उसे बौना व्यक्ति कहा जाता है। लेकिन हर बौने व्यक्ति के शरीर के लक्षण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। बौने व्यक्ति के शरीर के…

<p>Dwarfism</p>

जब लंबाई 147 सेमी. से कम हो तो उसे बौना व्यक्ति कहा जाता है। लेकिन हर बौने व्यक्ति के शरीर के लक्षण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। बौने व्यक्ति के शरीर के सभी भागों की लंबाई, असंगत (डिस्प्रपोशनेट) होती है, हाथ लंबे होते हैं, पैर छोटे होते, पैर बड़े हो तो हाथ छोटे होते हैं। पेट व छाती की बनावट भिन्न होती है। इस तरह की बनावट में शरीर के अंगों में सामंजस्यता नहीं पाई जाती है। संगत (प्रपोशनेट) बौनापन में शरीर के सभी अंग सामान्य से छोटे होते हैं।

रक्त में ग्रोथ हार्मोन की सामान्य मात्रा औसतन ४-१७ माइक्रोमिलिलीटर होनी चाहिए। यदि इस हार्मोन की कमी होती है तो विशेषज्ञ की देखरेख में समय-समय पर ग्रोथ हार्मोन के इंजेक्शन देकर खून में इसके स्तर को सामान्य रखने का प्रयास किया जाता है।

बौनेपन के प्रकार

शरीर के अंगों की लम्बाई व बनावट के आधार पर इनका वर्गीकरण निम्न वर्गों में किया गया है-
1. रोजोमेलिक – इस तरह के बौने व्यक्तियों में बाजू और जांघ बहुत छोटे होते हैं। बाकी शरीर सामान्य होता है।
2. मिजोमेलिक – इनमें बाजू के अग्र भाग और पैरों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम होती है। बाकी शरीर सामान्य होता है।
3. एक्रोमेलिक – जब पैर व हाथ दोनों ही बहुत ज्यादा छोटे होते हंै बाकि शरीर की लम्बाई सामान्य होती है।
4. माइक्रोमेलिक – जब हाथ व पैरों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम होती है।


निदान व जांच

बौनेपन की पहचान बाल्यावस्था में बच्चे के विकास की गति और लक्षणों से की जा सकती है। जब बच्चे की लम्बाई उम्र के अनुसार न होकर बहुत ही धीमी गति से हो तो यह भी बौनेपन का एक लक्षण हो सकता है। वर्तमान में विभिन्न जांचों में मुख्य रूप से खून में ग्रोथ हार्मोन के स्तर की जांच प्रारंभिक अवस्था में करने पर यह तय किया जा सकता है कि कहीं इसकी कमी के कारण बच्चा भविष्य में बौनेपन का शिकार तो नहीं हो जाएगा? यदि रक्त में इसका स्तर सामान्य पाया जाए और यदि बच्चे में वंशानुगत जांच एफजीएफआर-3 जीन में त्रुटि पाई जाए तो बाल्यावस्था में ही बौनेपन की बीमारी को पहचाना जा सकता है।

बच्चे के शरीर के सभी जोड़ों के एक्स-रे व एमआरआई से प्रारम्भिक अवस्था में ही बौनेपन की पहचान की जा सकती है। यदि बच्चे की लम्बाई कम है और जांच में कोई बीमारी न मिले तो उसे बौनापन नहीं कहकर छोटे कद का व्यक्ति कहा जाता है जो एक सामान्य व्यक्ति की तरह जिंदगी जीता है।


कारण

शरीर से जुड़ी 300 तरह की बीमारियों में से कोई एक बौनेपन का कारण होती है लेकिन इससे ग्रसित 70 प्रतिशत व्यक्तियों में बौनेपन की वजह पीयूष ग्रंथि द्वारा स्त्रावित ग्रोथ हार्मोन का न बनना होता है। दूसरा मुख्य कारण जिसे एकोण्ड्रोप्लेजिया कहते हैं इसमें शरीर के जोड़ों में असमानता व लचीलापन होता है। यह समस्या आनुवांशिक होती है। इसमें एफजीएफआर-3 नामक जीन में बदलाव से हड्डियों की वृद्धि नहीं होने के कारण बौनापन हो जाता है।

उपचार

एक साल की उम्र तक बच्चे का उचित विकास न हो तो माता-पिता को एंडोक्रायोनोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन से संपर्क करें। विशेषज्ञ बच्चे को तीन साल तक ऑब्जर्वेशन में रखने के बाद बौनेपन के बारे में निर्णय लेते हैं। ५-७ साल की उम्र में ग्रोथ हार्मोन इंजेक्शन लगाए जाते हैं। हर तीन माह में रक्त जांच करके हार्मोंस वृद्धि का पता लगाया जाता है। यदि नतीजे पॉजिटिव होते हैं तो दोबारा इंजेक्शन लगाया जाता है। यह प्रक्रिया १३-१५ साल की उम्र तक चलती है।

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