बीट के साथ दबिश में डयूटी
मसला सिर्फ बंदूक टांग कर गश्त तक सीमित नहीं है। जनकगंज थाने में पदस्थ हवलदार का कहना है कि पदोन्नति ने खुशी तो दी लेकिन काम दोगुना हो गया। थानों में सिपाही कम, हवलदार ज्यादा हो रहे हैं, इसलिए बीट की जिम्मेदारी के साथ गुंडे बदमाशों की पकड़-धकड़ की टीम में भी शामिल होना पड़ रहा है। वैसे यह काम टीम लीडर के साथ सिपाही का है।
मसला सिर्फ बंदूक टांग कर गश्त तक सीमित नहीं है। जनकगंज थाने में पदस्थ हवलदार का कहना है कि पदोन्नति ने खुशी तो दी लेकिन काम दोगुना हो गया। थानों में सिपाही कम, हवलदार ज्यादा हो रहे हैं, इसलिए बीट की जिम्मेदारी के साथ गुंडे बदमाशों की पकड़-धकड़ की टीम में भी शामिल होना पड़ रहा है। वैसे यह काम टीम लीडर के साथ सिपाही का है।
सिपाहियों की इस डयूटी में उलझे हवलदार
सिपाहियों की कमी की वजह से हवलदार होने के बाद भी संतरी डयूटी, दबिश, कंधे पर बंदूक टांगकर गश्त, थाना मोबाइल की ड्राइविंग सहित वह तमाम काम हवलदार बनने के बाद भी करने पड़ रहे हैं जो सिपाही के हैं। इसी तरह हवलदार से एएसआइ, एएसआइ से एसआइ और सब इंस्पेक्टर से निरीक्षक बने पुलिसकर्मियों की है। निरीक्षक बनाए गए पुलिसकर्मी का कहना है कि निरीक्षक बनने की हसरत तो पूरी हो गई, लेकिन अब हालात यह हैं कि थानों से ज्यादा निरीक्षक हो गए हैं। अभी निरीक्षक स्तर के अधिकारियों को थाना हासिल के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। अब थोक में निरीक्षक हो गए हैं तो थाने की कमान हासिल करना बड़ी चुनौती हो गया है। जाहिर है जिसका रसूख वजनदार होगा वही थाने की कमान संभालेगा।
सिपाहियों की कमी की वजह से हवलदार होने के बाद भी संतरी डयूटी, दबिश, कंधे पर बंदूक टांगकर गश्त, थाना मोबाइल की ड्राइविंग सहित वह तमाम काम हवलदार बनने के बाद भी करने पड़ रहे हैं जो सिपाही के हैं। इसी तरह हवलदार से एएसआइ, एएसआइ से एसआइ और सब इंस्पेक्टर से निरीक्षक बने पुलिसकर्मियों की है। निरीक्षक बनाए गए पुलिसकर्मी का कहना है कि निरीक्षक बनने की हसरत तो पूरी हो गई, लेकिन अब हालात यह हैं कि थानों से ज्यादा निरीक्षक हो गए हैं। अभी निरीक्षक स्तर के अधिकारियों को थाना हासिल के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता था। अब थोक में निरीक्षक हो गए हैं तो थाने की कमान हासिल करना बड़ी चुनौती हो गया है। जाहिर है जिसका रसूख वजनदार होगा वही थाने की कमान संभालेगा।