अलग झंडे व संविधान की मांग
सशस्त्र विद्रोही समूह (एनएससीएन-आईएम) ने कहा कि बिना अलग झंडे और संविधान के भारत की केंद्र सरकार के साथ शांति समझौते का सम्मानजनक समाधान नहीं निकलेगा। एनएससीएन-आईएम की एक साझा काउंसिल बैठक हुई जिसमें नागा शांति समझौता को लेकर विचार विमर्शं किया गया। एनएससीएन-आईएम का ये कठोर रुख ऐसे समय में आया है जब नागालैंड के राज्यपाल और वार्ताकार आरएन रवि के बीच मतभेदों के कारण शांति वार्ता गतिरोध का सामना कर रही है। एनएससीएन-आईएम ने एक बयान में कहा कि सभा ने सवसम्मित से इस प्रस्ताव को पारित किया है, जो एनएससीएन-आईएम के कथन को दोहराता है।
2015 के फ्रेमवर्क समझौते पर हो सहमति
विद्रोही समूह की मांग है कि वह अलग ध्वज और संविधान के बिना केंद्र सरकार के साथ सम्मानजनक शांति वार्ता नहीं करेगा। एनएससीएन-आईएम ने एक बयान में कहा कि सभा ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित किया है, जो एनएससीएन-आईएम के कथन को दोहराता है। विद्रोह समूह चाहता है कि नागा राष्ट्रीय झंडा और संविधान, भारत-नागा राजनैतिक समाधानों का हिस्सा जरूर बनें और सौदे को सम्मानजनक और स्वीकार्य के रूप में योग्य बनाएं। इस बयान में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार और एनएससीएन-आईएम अंतिम सहमति पर जरूर पहुंचे जो कि तीन अगस्त 2015 को ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते पर किए गए हस्ताक्षर पर आधारित हो।
पिछले दावे को खारिज किया था केंद्र ने
बयान में यह भी कहा गया है कि ‘अंतिम समझौते’ के लिए एनएससीएन-आईएम और केंद्र सरकार को 3 अगस्त, 2015 में हुए ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते के अनुसार ही आगे बढऩा चाहिए। गौरलतब है कि पिछले महीने एनएससीएन-आईएम ने दावा किया था कि केंद्र ने नागा लोगों की संप्रभुता को मान्यता दी थी। साल 2015 में इस बात पर समझौता हुआ था कि नागा लोग सह-अस्तित्व में रहेंगे लेकिन भारत में विलय नहीं करेंगे। हालांकि, सरकारी सूत्रों का कहना है कि दूसरे नागा सशस्त्र समूह नागा राष्ट्रीय राजनैतिक समूह ने कहा है कि वो शांति समझौते पर बिना अलग झंडे और संविधान की मांग के हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हैं। गौरतलब है कि महासचिव थुइलिंगेंग मुइवा सहित एनएससीएन-आईएम के शीर्ष नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली में डेरा डाले हुए है।