झंडारोहण के बाद अपने संबोधन में मोहन भागवत ने कहा कि समर्थ, वैभवशाली और परोपकारी भारत निर्माण को ध्यान में रखकर गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। कर्तव्य बुद्धि से किया गया कार्य ही इस लक्ष्य को प्राप्त कराएगा। देश और विश्व उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ेगा।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनों के लिए जीता है। अपनों को व्याख्यायित करते हुए उन्होंने कहा कि समाज में सबसे नीचे पायदान पर खड़े लोग ही उसके अपने हैं। तिरंगा में उपयोग किये गए रंगों की चर्चा भी की। कहा, ध्यान के उपयोग को दिशा देने की जरूरत है। उदाहरण देते हुए कहा कि रावण भी ज्ञानवान था, लेकिन उसके सोचने की दिशा गलत थी और एक राष्ट्र का विनाश हो गया। इसलिए विद्या का उपयोग ज्ञान-ध्यान में करें। बल का उपयोग दुर्बलों की रक्षा और धन का उपयोग गरीबों की सेवा में करें।
उन्होंने तन समर्पित, मन समर्पित और यह जीवन समर्पित गीत की पक्तियों को सुनते हुए पीड़ा, दुख और कष्ट सहने वालों का अपने धन, शक्ति और ज्ञान से परोपकार का मंत्र दिया। देश हमें देता है सबकुछ सुनकर देश के लिए सर्वस्व समर्पण का भाव जगाया। समृद्धि का उपयोग देश हित मे करने को समर्पण भाव जगाया।
उन्होंने कड़ी मेहनत कर समृद्धि अर्जित करने को सही बताया और कहा कि भारत वसुधैव कुटुम्बकम के भाव को आदिकाल से लेकर चलता है। इसलिए इसका उपयोग संसार के सभी जरूरतमंदों के हित मे किया जाना चाहिए। इस दौरान उन्होंने वैभवशाली, समर्थ और परोपकारी भारत का आह्वान किया। कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम से हुआ।