गोरखपुर

हरिशंकर तिवारी के दबदबे के दौर की तस्वीरें, राजीव गांधी से वाजपेयी तक, प्रधानमंत्रियों से होती थी मुलाकातें

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Published: May 17, 2023 12:57:01 pm
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हरिशंकर तिवारी गोरखपुर के लिए 70 के दशक में ही जाना पहचाना नाम बन गए थे। पूरे प्रदेश और दिल्ली तक की निगाहें उनकी ओर आती हैं 1985 में। 1985 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लिए सहानुभूति लहर में भी वे गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से निर्दलीय चुनाव जीतते हैं।

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1985 का चुनाव हरिशंकर तिवारी जेल में रहकर लड़ते हैं। जेल में रहते हुए चुनाव जीतने के बाद उनका राजनीतिक कद तेजी से बढ़ता है। इसके बाद बाबूजी कहे जाने वाले हरिशंकर गोरखपुर ही नहीं पूरे पूर्वांचल में दखल देने लगते हैं।

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हरिशंकर तिवारी साल 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी में मंत्री बने रहे। सरकारें अलग दलों की बनीं लेकिन उनकी मिनिस्टरी बनी रहा। 22 साल तक चिल्लूपार सीट से विधायक रहे तिवारी को दो बार, साल 2007 और 2012 में हार मिली। इसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।

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1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी के खिलाफ गोरखपुर जिले में 26 मामले दर्ज किए गए। इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे तमाम गंभीर केस भी थे।

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हरिशंकर तिवारी पर तमाम मुकदमें हुए और वो जेल भी गए लेकिन किसी आरोप में दोषी नहीं पाए गए। सभी मामलों में बरी हो गए। अपने आखिरी दो चुनावी हल्फनामों यानी साल 2007 और 2012 में उनके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस नहीं था।

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हरिशंकर तिवारी का परिवार भी राजनीति में है। उनके बड़े बेटे कुशल तिवारी दो बार सांसद रहे हैं। छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी भी चिल्‍लूपार सीट से विधायक रह चुके हैं। हरिशंकर तिवारी के भांजे गणेश शंकर पांडेय बसपा सरकार में विधान परिषद सभापति रहे हैं।

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पूर्वांचल की राजनीत‍ि में दशकों से दबदबा रखने वाले हर‍िशंकर त‍िवारी के न‍िधन के बाद आज दोपहर बाद बड़हलगंज मुक्तिधाम पर सरयू नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार क‍िया जाएगा।

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